इतिहास के पन्ने अब धुंधले हो गए हैं और अब कम ही लोगों को सासाराम शेरशाह सूरी के शहर की तरह याद है.सासाराम शेरशाह सूरी के लिए इतना अपना शहर था कि उसने अपने जीते जी यहाँ अपना मक़बरा बनवाना शुरु कर दिया था.यह मक़बरा निर्माण कार्यों के प्रति उसके अनुराग का भी उदाहरण है. ठीक उसी तरह जिस तरह से ग्रैंड ट्रंक रोड है. ग्रैंड
ट्रंक रोड यानी जीटी रोड शेरशाह सूरी के छह साल के शासन काल का ऐसा योगदान
है जिसे इतिहास के पन्नों से कभी मिटाया नहीं जा सकता.इतिहासकार
कहते हैं कि सड़क तो पहले भी थी लेकिन शेरशाह सूरी ने उसका पुनर्निर्माण
करवाया और इसे यात्रा और व्यापार के योग्य बना दिया.
शेरशाह सूरी और ग्रैंड ट्रंक रोड पर अध्ययन करने वाले डॉ श्यामसुंदर तिवारी कहते हैं कि शेरशाह सूरी ने ग्रैंड ट्रंक रोड पर सत्रह सौ सरायों का निर्माण करवाया.वे कहते हैं, “कर्मचारियों से युक्त इन सरायों की वजह से व्यापारियों को लूटने आदि की घटना कम होने लगी जिससे व्यापार बहुत बढ़ा.”दरकिनार सासाराम
लेकिन अब स्वर्णिम चतुर्भुज के राष्ट्रीय राजमार्ग क्रमांक दो ने शेरशाह सूरी के सासाराम को मानो किनारे कर दिया है.
कुछ बरस पहले तक सासाराम कोलकाता से बनारस तक की यात्रा के लिए एक अच्छा ख़ासा पड़ाव था. अब वाहन वहाँ पहुँचते ही नहीं.
लेकिन इस परिवर्तन से व्यापारी ख़ुश हैं. सब्ज़ी का व्यवसाय करने वाले मोहम्मद सलीम कहते हैं, “नई सड़क से सभी को फ़ायदा है. लोगों का समय बच रहा है और वे जाम में नहीं फँस रहे हैं.”
हालांकि मोहम्मद सलीम की हाँ में हाँ मिला रहे उनके भतीजे मोहम्मद इम्तियाज़ अहमद इस बात से नाराज़ भी हैं कि शहर के भीतर की वो सड़क जो ग्रैंड ट्रंक रोड थी उसका किसी को ख़याल नहीं.
वे कहते हैं, “नई सड़क तो ठीक है लेकिन पुरानी ग्रैंड ट्रंक रोड की ओर किसी का ध्यान नहीं है, अब तो वहाँ चलने तक की जगह नहीं है.”
वैसे नाख़ुश तो सासाराम से निकलकर राष्ट्रीय राजमार्ग से मिलने वाले मोड़ पर चाय-बिस्किट की दुकान चलाने वाला भी नहीं है. वह बताता रहा कि कैसे इस नई सड़क ने उसके व्यवसाय को आधा कर दिया है. लेकिन वह माइक देखकर चुप हो जाता है.
उसका कहना है कि उसकी तरह बहुत से व्यावसायी दुखी हैं.
सासाराम
के लिए अब ग्रैंड ट्रंक रोड की जगह अब ग्रैंड ट्रंक रोड बाइपास है. लेकिन
डॉ श्याम सुंदर तिवारी मानते हैं कि यह कोई बड़ा परिवर्तन नहीं है और
धीरे-धीरे सब बाइपास के नज़दीक चला जाएगा.
वे कहते हैं, “धीरे-धीरे शहर के होटल और दूसरे जो व्यावसायिक प्रतिष्ठान हैं वो बाइपास सड़क की ओर जा रहे हैं.”
वे मानते हैं कि ग्रैंड ट्रंक का मार्ग पहले भी बदलता रहा है. उनका कहना है कि धीरे-धीरे नई सड़क भी पुरानी ग्रैंड ट्रंक रोड की तरह हो जाएगी.
वे कहते हैं, “धीरे-धीरे सारे प्रतिष्ठान वहाँ चले जाएँगे फिर धीरे-धीरे वह सड़क भी ग्रैंड ट्रंक की तरह प्रतिष्ठित हो जाएगी.”
हालांकि ग्रैंड ट्रंक रोड या शेरशाह सूरी की प्रतिष्ठा इस बात से कम नहीं होगी कि नई सड़क कहाँ से गुज़रती है.
लेकिन सासाराम को ग्रैंड ट्रंक रोड से स्वर्णिम चतुर्भुज या गोल्डन क्वाड्रिलेट्रल तक आने के लिए लंबा समय लगेगा.
शेरशाह सूरी और ग्रैंड ट्रंक रोड पर अध्ययन करने वाले डॉ श्यामसुंदर तिवारी कहते हैं कि शेरशाह सूरी ने ग्रैंड ट्रंक रोड पर सत्रह सौ सरायों का निर्माण करवाया.वे कहते हैं, “कर्मचारियों से युक्त इन सरायों की वजह से व्यापारियों को लूटने आदि की घटना कम होने लगी जिससे व्यापार बहुत बढ़ा.”दरकिनार सासाराम
नई सड़क तो ठीक है लेकिन पुरानी ग्रैंड ट्रंक रोड की ओर किसी का ध्यान नहीं है, अब तो वहाँ चलने तक की जगह नहीं है
मोहम्मद इम्तियाज़ अहमद
कुछ बरस पहले तक सासाराम कोलकाता से बनारस तक की यात्रा के लिए एक अच्छा ख़ासा पड़ाव था. अब वाहन वहाँ पहुँचते ही नहीं.
लेकिन इस परिवर्तन से व्यापारी ख़ुश हैं. सब्ज़ी का व्यवसाय करने वाले मोहम्मद सलीम कहते हैं, “नई सड़क से सभी को फ़ायदा है. लोगों का समय बच रहा है और वे जाम में नहीं फँस रहे हैं.”
हालांकि मोहम्मद सलीम की हाँ में हाँ मिला रहे उनके भतीजे मोहम्मद इम्तियाज़ अहमद इस बात से नाराज़ भी हैं कि शहर के भीतर की वो सड़क जो ग्रैंड ट्रंक रोड थी उसका किसी को ख़याल नहीं.
वे कहते हैं, “नई सड़क तो ठीक है लेकिन पुरानी ग्रैंड ट्रंक रोड की ओर किसी का ध्यान नहीं है, अब तो वहाँ चलने तक की जगह नहीं है.”
वैसे नाख़ुश तो सासाराम से निकलकर राष्ट्रीय राजमार्ग से मिलने वाले मोड़ पर चाय-बिस्किट की दुकान चलाने वाला भी नहीं है. वह बताता रहा कि कैसे इस नई सड़क ने उसके व्यवसाय को आधा कर दिया है. लेकिन वह माइक देखकर चुप हो जाता है.
उसका कहना है कि उसकी तरह बहुत से व्यावसायी दुखी हैं.
उम्मीद
धीरे-धीरे सारे प्रतिष्ठान वहाँ चले जाएँगे फिर धीरे-धीरे वह सड़क भी ग्रैंड ट्रंक की तरह प्रतिष्ठित हो जाएगी
डॉ श्याम सुंदर तिवारी
वे कहते हैं, “धीरे-धीरे शहर के होटल और दूसरे जो व्यावसायिक प्रतिष्ठान हैं वो बाइपास सड़क की ओर जा रहे हैं.”
वे मानते हैं कि ग्रैंड ट्रंक का मार्ग पहले भी बदलता रहा है. उनका कहना है कि धीरे-धीरे नई सड़क भी पुरानी ग्रैंड ट्रंक रोड की तरह हो जाएगी.
वे कहते हैं, “धीरे-धीरे सारे प्रतिष्ठान वहाँ चले जाएँगे फिर धीरे-धीरे वह सड़क भी ग्रैंड ट्रंक की तरह प्रतिष्ठित हो जाएगी.”
हालांकि ग्रैंड ट्रंक रोड या शेरशाह सूरी की प्रतिष्ठा इस बात से कम नहीं होगी कि नई सड़क कहाँ से गुज़रती है.
लेकिन सासाराम को ग्रैंड ट्रंक रोड से स्वर्णिम चतुर्भुज या गोल्डन क्वाड्रिलेट्रल तक आने के लिए लंबा समय लगेगा.
साभार: BBC

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