Saturday, August 18, 2012

संतोष मैथ्यू एक लाजवाब आइएस आफिसर


अरे सुनो रे वसुधा केंद्र के संचालकों, पटना से एक खुशखबरी आई है की अब हमलोगों को इंदिरा आवास से सम्बंधित देख - रेख तथा फोटोग्राफी का कार्य मिलने वाला है ! जानते हो आप -ये किसके विशेष कृपा या पहल से यह कार्य मिला है ? ग्रामीण विकास मंत्रालय के सचिव श्री संतोष मैथ्यू जी के दिमाग की उपज है यह कार्य ! काम तो पहले भी बहुत मिला था लेकिन, ये बिहार के व्योरोक्राट्स  हमेशा रस्ते में रोड़ा अटकाने  का काम किया ! इस कार्य के पहले भी न जाने कितने दफे सुनने तथा देखने को मिला की फलां काम वसुधा केंद्र के माध्यम से किया जायेगा ! नतीजा सिफर रहा ! कारन की वसुधा केंद्र को सभी बेईमान व्योरोक्राट्स सवत के जैसा इर्ष्या करके किसी भी काम को नहीं होने दिया ! कारन की इनकी बाबूगिरी को खतरा महशुस होता था ! लेकिन वन का गीदड़ जायेगा किधर - एक ना एक दिन तेको आनी ही पड़ेगी गिरफ्त में ! संतोष मैथ्यू जी ने वो कर दिखाया जो पहले कभी नहीं हुआ था ! इस कदर सर्कुलर / पत्र तथा विज्ञापन जारी  किया है की प्रखंड से लेकर डिएम कार्यालय की पसीने छुट रहे हैं 'की' कैसे हर बार की भांति इस बार भी वसुधा केन्द्रों को इस काम से वंचित किया जाये? लेकिन यंहा तो सभी पिशाची बुद्धि फेल होते नज़र मालूम पड़ती है ! इंदिरा आवास में करोड़ों रुपये की गड़बड़झाला हुई है ! जैसे एक ही नाम के व्यक्ति को दो इंदिरा आवास, किसी ने लिंटर लेबेल तक घर बनाया नहीं लेकिन मुखिया, सचिव, बीडीओ तथा दलालों से पैक्ट करके राशी की निकासी कर बंदरबांट कर लिया ! या फिर जिसको  आवश्यकता नहीं फिर भी उसको आवास पास कर दिया !  ऐसे बेईमानो का नब्ज पकड़ने का काम श्री संतोष मैथ्यू जी ने किया है ! 
अब वसुधा केंद्र के संचालक अपने कैमरा को लेकर जायेंगे और सम्बंधित अभ्यर्थी के घर का फोटो खिचेंगे तत्पश्चात उस घर से सम्बंधित एक रिपोर्ट बनायेंगे और फिर उसको अपने केंद्र का मुहर लगा कर अपना हस्ताक्षर कर अपने प्रखंड विकास पदाधिकारी को सौप देंगे ! इसके बाद ग्रामीण विकास मंत्रालय वास्तविकता को ध्यान में रखकर अग्रिम राशी सम्बंधित अभ्यावार्थियो को निर्गत करेगा ! ये हुई न बात ! इसके पहले सिर्फ पत्र जारी होता था की फलाना काम वसुधा केंद्र करेगा ! लेकिन वसुधा केन्द्रों का मुहर हस्ताक्षर की जिक्र तक उस पत्र में नहीं होती थी ! बाबु अपने किसी दुलरुआ से उसी काम को करा कर रिपोर्ट दे देते थे की वसुधा केन्द्रों से ही इस काम को कराया गया है ! लेकिन वसुधा के लाख प्रयास के बाद भी काम मुयस्सर नहीं हो पाता था !
अब बाबु लोग कितना मुहर और फर्जी हस्ताक्षर वसुधा केंद्र का जुगाड़ करेंगे ! अगर करेंगे भी तो लाल घर जायेंगे अपनी इज्ज़त को चार चाँद लगाने ! लेकिन वसुधा केंद्र के संचालकों के उपर ये एक बड़ी जिम्मेवारी सौपी गयी है ! ध्यान इस बात का रखना होगा की वसुधा केन्द्द्- कोई भी दलाल , मुखिया, सचिव या बीडीओ के बहकावे में न आये! ये लोग हर संभव कोशिश यही करेंगे की येन केन- प्रकारेण वसुधा केन्द्रों से गलत कराया जाये तथा वसुधा को बदनाम कर इस महत्वपूर्ण कार्य को फिर से अपने गिरफ्त में लिया जाये ! इस लिए संचालकों मै आपको हिदायत दे रहा हूँ की जो सत्य है वही रिपोर्ट बना कर दो ! वर्ना सरकार की भरोसा हम लोगों पैर से उठ जाएगी ! और जब एक बार भरोसा उठता है तो उसे पुनः बहल करने में काफी वक्त लग जाता है ! काम करो नाम करो ! अब आने वाला वक्त हमारा होगा ! बहुत तडपाया हमलोगों को सुशासन के बाबुओं ने ! आने वाले दिनों में अब हमलोग बिहार का नया तक़दीर लिखने वाले हैं ! जो सुशासन से लाख गुना बेहतर होगा ! जय हो .......    :-)

दुखन भाई कहिन,

अपुन का फंडा
दुखन भाई कहिन,
की पानी को नहीं  काटा  जा सकता, और एक चना घड़ा नहीं फोड़ सकता !
अरे भाई दुखन ........ यही बुझा तो पियाज ......
पानी को भी काटा जा सकता है और एक चने से घड़े को भी फोड़ा जा सकता है !
वो कैसे ... दुखन भाई ने कहिन ?
अरे भाई पानी को बर्फ बना दो और जितने हिस्से में चाहो काट लो ....
और सुन रे दुखन एक चने को घड़े में नहीं , उसे लेजाकर खेत में लगा दो ढेरों चने हो जावेंगे फिर उसे घड़े में ड़ाल दो
फिर देखते हैं की घड़ा कैसे नहीं फूटता है .......
है न ठलुआ दिमाग ...... तो फिर बोलता क्यूँ नहीं की ....
.......जय हो .........

गांवों में समन्वय के लिए 900 करोड़ रुपया ग्रामीण विकास मंत्रालय देगी !

19-08-2012

अरे भाई जयराम रमेश जी , ये पैसे वैसे ही लगते है गाँवो के लिए जैसे शहरी क्षेत्र ग्रामिणों को होटल में खाने के बाद बैरों की तरह ट्रिप दे रहा हो ! लुटा दो देश का सारा धन दौलत अर्बन क्षेत्रों में ! ग्रामीण क्षेत्र बैरा जो ठहरा शहर वालों का ! या फिर शहर वाले कर्ज दे रखे होंगे गाँव वालों को !
दिमाग ठिकाने आ जायेगा जब ग्रामीण लोग शहरों को राशन - पानी, दूध- दही, इंट - पत्थर, मजदुर भेजना बंद कर देंगे !
इसमें कोई संदेह नहीं ' सरकार आज भी ग्रामिणों को जेनेरल डब्बा समझती है '

..........जय हो........ ऐसी सरकार की

Wednesday, August 15, 2012

रविन्द्र नाथ टैगोर अंग्रेजों का चमचा

क्या किसी ने जन गण मन गाते सोचा की आखिर ये कौन ‘अधिनायक’ और ‘भारत भाग्य विधाता’ हैं जिनके जयघोष से हम अपने राष्ट्रगान की शुरुआत करते हैं?  

सन 1911 तक भारत की राजधानी बंगाल हुआ करता था। सन 1905 में जब बंगाल विभाजन को लेकर अंग्रेजो के खिलाफ बंग-भंग आन्दोलन के विरोध में बंगाल के लोग उठ खड़े हुए तो अंग्रेजो ने अपने आपको बचाने के लिए के कलकत्ता से हटाकर राजधानी को दिल्ली ले गए और 1911 में दिल्ली को राजधानी घोषित कर दिया। पूरे भारत में उस समय लोग विद्रोह से भरे हुए थे तो अंग्रेजो ने अपने इंग्लॅण्ड के राजा को भारत आमंत्रित किया ताकि लोग शांत हो जाये। इंग्लैंड का राजा जोर्ज पंचम 1911 में भारत में आया। रविंद्रनाथ टैगोर पर दबाव बनाया गया कि तुम्हे एक गीत जोर्ज पंचम के स्वागत में लिखना ही होगा।

उस समय टैगोर का परिवार अंग्रेजों के काफी नजदीक हुआ करता था, उनके परिवार के बहुत से लोग ईस्ट इंडिया कंपनी के लिए काम किया करते थे, उनके बड़े भाई अवनींद्र नाथ टैगोर बहुत दिनों तक ईस्ट इंडिया कंपनी के कलकत्ता डिविजन के निदेशक (Director) रहे। उनके परिवार का बहुत पैसा ईस्ट इंडिया कंपनी में लगा हुआ था। और खुद रविन्द्र नाथ टैगोर की बहुत सहानुभूति थी अंग्रेजों के लिए। रविंद्रनाथ टैगोर ने मन से या बेमन से जो गीत लिखा उसके बोल है "जन गण मन अधिनायक जय हे भारत भाग्य विधाता"। इस गीत के सारे के सारे शब्दों में अंग्रेजी राजा जोर्ज पंचम का गुणगान है, जिसका अर्थ समझने पर पता लगेगा कि ये तो हकीक़त में ही अंग्रेजो की खुशामद में लिखा गया था।

इस राष्ट्रगान का अर्थ कुछ इस तरह से होता है "भारत के नागरिक, भारत की जनता अपने मन से आपको भारत का भाग्य विधाता समझती है और मानती है। हे अधिनायक (Superhero) तुम्ही भारत के भाग्य विधाता हो। तुम्हारी जय हो ! जय हो ! जय हो ! तुम्हारे भारत आने से सभी प्रान्त पंजाब, सिंध, गुजरात, मराठा मतलब महारास्त्र, द्रविड़ मतलब दक्षिण भारत, उत्कल मतलब उड़ीसा, बंगाल आदि और जितनी भी नदिया जैसे यमुना और गंगा ये सभी हर्षित है, खुश है, प्रसन्न है , तुम्हारा नाम लेकर ही हम जागते है और तुम्हारे नाम का आशीर्वाद चाहते है। तुम्हारी ही हम गाथा गाते है। हे भारत के भाग्य विधाता (सुपर हीरो ) तुम्हारी जय हो जय हो जय हो। "

जोर्ज पंचम भारत आया 1911 में और उसके स्वागत में ये गीत गाया गया। जब वो इंग्लैंड चला गया तो उसने उस जन गण मन का अंग्रेजी में अनुवाद करवाया। क्योंकि जब भारत में उसका इस गीत से स्वागत हुआ था तब उसके समझ में नहीं आया था कि ये गीत क्यों गाया गया और इसका अर्थ क्या है। जब अंग्रेजी अनुवाद उसने सुना तो वह बोला कि इतना सम्मान और इतनी खुशामद तो मेरी आज तक इंग्लॅण्ड में भी किसी ने नहीं की। वह बहुत खुश हुआ। उसने आदेश दिया कि जिसने भी ये गीत उसके (जोर्ज पंचम के) लिए लिखा है उसे इंग्लैंड बुलाया जाये। रविन्द्र नाथ टैगोर इंग्लैंड गए। जोर्ज पंचम उस समय नोबल पुरस्कार समिति का अध्यक्ष भी था।

उसने रविन्द्र नाथ टैगोर को नोबल पुरस्कार से सम्मानित करने का फैसला किया। तो रविन्द्र नाथ टैगोर ने इस नोबल पुरस्कार को लेने से मना कर दिया। क्यों कि गाँधी जी ने बहुत बुरी तरह से रविन्द्रनाथ टेगोर को उनके इस गीत के लिए खूब डांटा था। टैगोर ने कहा की आप मुझे नोबल पुरस्कार देना ही चाहते हैं तो मैंने एक गीतांजलि नामक रचना लिखी है उस पर मुझे दे दो लेकिन इस गीत के नाम पर मत दो और यही प्रचारित किया जाये क़ि मुझे जो नोबेल पुरस्कार दिया गया है वो गीतांजलि नामक रचना के ऊपर दिया गया है। जोर्ज पंचम मान गया और रविन्द्र नाथ टैगोर को सन 1913 में गीतांजलि नामक रचना के ऊपर नोबल पुरस्कार दिया गया।

रविन्द्र नाथ टैगोर की ये सहानुभूति ख़त्म हुई 1919 में जब जलिया वाला कांड हुआ और गाँधी जी ने लगभग गाली की भाषा में उनको पत्र लिखा और कहा क़ि अभी भी तुम्हारी आँखों से अंग्रेजियत का पर्दा नहीं उतरेगा तो कब उतरेगा, तुम अंग्रेजों के इतने चाटुकार कैसे हो गए, तुम इनके इतने समर्थक कैसे हो गए ? फिर गाँधी जी स्वयं रविन्द्र नाथ टैगोर से मिलने गए और बहुत जोर से डाटा कि अभी तक तुम अंग्रेजो की अंध भक्ति में डूबे हुए हो ? तब जाकर रविंद्रनाथ टैगोर की नीद खुली। इस काण्ड का टैगोर ने विरोध किया और नोबल पुरस्कार अंग्रेजी हुकूमत को लौटा दिया। सन 1919 से पहले जितना कुछ भी रविन्द्र नाथ टैगोर ने लिखा वो अंग्रेजी सरकार के पक्ष में था और 1919 के बाद उनके लेख कुछ कुछ अंग्रेजो के खिलाफ होने लगे थे।

रविन्द्र नाथ टेगोर के बहनोई, सुरेन्द्र नाथ बनर्जी लन्दन में रहते थे और ICS ऑफिसर थे। अपने बहनोई को उन्होंने एक पत्र लिखा था (ये 1919 के बाद की घटना है) । इसमें उन्होंने लिखा है कि ये गीत 'जन गण मन' अंग्रेजो के द्वारा मुझ पर दबाव डलवाकर लिखवाया गया है। इसके शब्दों का अर्थ अच्छा नहीं है। इस गीत को नहीं गाया जाये तो अच्छा है। लेकिन अंत में उन्होंने लिख दिया कि इस चिठ्ठी को किसी को नहीं दिखाए क्योंकि मैं इसे सिर्फ आप तक सीमित रखना चाहता हूँ लेकिन जब कभी मेरी म्रत्यु हो जाये तो सबको बता दे। 7 अगस्त 1941 को रबिन्द्र नाथ टैगोर की मृत्यु के बाद इस पत्र को सुरेन्द्र नाथ बनर्जी ने ये पत्र सार्वजनिक किया, और सारे देश को ये कहा क़ि ये जन गन मन गीत न गाया जाये।

1941 तक कांग्रेस पार्टी थोड़ी उभर चुकी थी। लेकिन वह दो खेमो में बट गई। जिसमे एक खेमे के समर्थक बाल गंगाधर तिलक थे और दुसरे खेमे में मोती लाल नेहरु थे। मतभेद था सरकार बनाने को लेकर। मोती लाल नेहरु चाहते थे कि स्वतंत्र भारत की सरकार अंग्रेजो के साथ कोई संयोजक सरकार (Coalition Government) बने। जबकि गंगाधर तिलक कहते थे कि अंग्रेजो के साथ मिलकर सरकार बनाना तो भारत के लोगों को धोखा देना है। इस मतभेद के कारण लोकमान्य तिलक कांग्रेस से निकल गए और उन्होंने गरम दल बनाया। कोंग्रेस के दो हिस्से हो गए। एक नरम दल और एक गरम दल।

गरम दल के नेता थे लोकमान्य तिलक जैसे क्रन्तिकारी। वे हर जगह वन्दे मातरम गाया करते थे। और नरम दल के नेता थे मोती लाल नेहरु (यहाँ मैं स्पष्ट कर दूँ कि गांधीजी उस समय तक कांग्रेस की आजीवन सदस्यता से इस्तीफा दे चुके थे, वो किसी तरफ नहीं थे, लेकिन गाँधी जी दोनों पक्ष के लिए आदरणीय थे क्योंकि गाँधी जी देश के लोगों के आदरणीय थे)। लेकिन नरम दल वाले ज्यादातर अंग्रेजो के साथ रहते थे। उनके साथ रहना, उनको सुनना, उनकी बैठकों में शामिल होना। हर समय अंग्रेजो से समझौते में रहते थे। वन्देमातरम से अंग्रेजो को बहुत चिढ होती थी। नरम दल वाले गरम दल को चिढाने के लिए 1911 में लिखा गया गीत "जन गण मन" गाया करते थे और गरम दल वाले "वन्दे मातरम"।

नरम दल वाले अंग्रेजों के समर्थक थे और अंग्रेजों को ये गीत पसंद नहीं था तो अंग्रेजों के कहने पर नरम दल वालों ने उस समय एक हवा उड़ा दी कि मुसलमानों को वन्दे मातरम नहीं गाना चाहिए क्यों कि इसमें बुतपरस्ती (मूर्ति पूजा) है। और आप जानते है कि मुसलमान मूर्ति पूजा के कट्टर विरोधी है। उस समय मुस्लिम लीग भी बन गई थी जिसके प्रमुख मोहम्मद अली जिन्ना थे। उन्होंने भी इसका विरोध करना शुरू कर दिया क्योंकि जिन्ना भी देखने भर को (उस समय तक) भारतीय थे मन,कर्म और वचन से अंग्रेज ही थे उन्होंने भी अंग्रेजों के इशारे पर ये कहना शुरू किया और मुसलमानों को वन्दे मातरम गाने से मना कर दिया। जब भारत सन 1947 में स्वतंत्र हो गया तो जवाहर लाल नेहरु ने इसमें राजनीति कर डाली। संविधान सभा की बहस चली। संविधान सभा के 319 में से 318 सांसद ऐसे थे जिन्होंने बंकिम बाबु द्वारा लिखित वन्देमातरम को राष्ट्र गान स्वीकार करने पर सहमति जताई।

बस एक सांसद ने इस प्रस्ताव को नहीं माना। और उस एक सांसद का नाम था पंडित जवाहर लाल नेहरु। उनका तर्क था कि वन्दे मातरम गीत से मुसलमानों के दिल को चोट पहुचती है इसलिए इसे नहीं गाना चाहिए (दरअसल इस गीत से मुसलमानों को नहीं अंग्रेजों के दिल को चोट पहुंचती थी)। अब इस झगडे का फैसला कौन करे, तो वे पहुचे गाँधी जी के पास। गाँधी जी ने कहा कि जन गन मन के पक्ष में तो मैं भी नहीं हूँ और तुम (नेहरु ) वन्देमातरम के पक्ष में नहीं हो तो कोई तीसरा गीत तैयार किया जाये। तो महात्मा गाँधी ने तीसरा विकल्प झंडा गान के रूप में दिया "विजयी विश्व तिरंगा प्यारा झंडा ऊँचा रहे हमारा"। लेकिन नेहरु जी उस पर भी तैयार नहीं हुए।

नेहरु जी का तर्क था कि झंडा गान ओर्केस्ट्रा पर नहीं बज सकता और जन गन मन ओर्केस्ट्रा पर बज सकता है। उस समय बात नहीं बनी तो नेहरु जी ने इस मुद्दे को गाँधी जी की मृत्यु तक टाले रखा और उनकी मृत्यु के बाद नेहरु जी ने जन गण मन को राष्ट्र गान घोषित कर दिया और जबरदस्ती भारतीयों पर इसे थोप दिया गया जबकि इसके जो बोल है उनका अर्थ कुछ और ही कहानी प्रस्तुत करते है, और दूसरा पक्ष नाराज न हो इसलिए वन्दे मातरम को राष्ट्रगीत बना दिया गया लेकिन कभी गया नहीं गया। नेहरु जी कोई ऐसा काम नहीं करना चाहते थे जिससे कि अंग्रेजों के दिल को चोट पहुंचे, मुसलमानों के वो इतने हिमायती कैसे हो सकते थे जिस आदमी ने पाकिस्तान बनवा दिया जब कि इस देश के मुसलमान पाकिस्तान नहीं चाहते थे, जन गण मन को इस लिए तरजीह दी गयी क्योंकि वो अंग्रेजों की भक्ति में गाया गया गीत था और वन्देमातरम इसलिए पीछे रह गया क्योंकि इस गीत से अंगेजों को दर्द होता था।

बीबीसी ने एक सर्वे किया था। उसने पूरे संसार में जितने भी भारत के लोग रहते थे, उनसे पुछा कि आपको दोनों में से कौन सा गीत ज्यादा पसंद है तो 99 % लोगों ने कहा वन्देमातरम। बीबीसी के इस सर्वे से एक बात और साफ़ हुई कि दुनिया के सबसे लोकप्रिय गीतों में दुसरे नंबर पर वन्देमातरम है। कई देश है जिनके लोगों को इसके बोल समझ में नहीं आते है लेकिन वो कहते है कि इसमें जो लय है उससे एक जज्बा पैदा होता है।

तो ये इतिहास है वन्दे मातरम का और जन गण मन का। अब ये आप को तय करना है कि आपको क्या गाना है ?

नितीश कुमार अपना स्वाभिमान देखते हैं ऐसे शहीदों का नहीं

देश के शहीद के दाह संस्कार स्थल पर शराब का अड्डा ....

खुदीराम बोस का जहां अंतिम संस्कार किया गया था . आज बहां छलकते है दारु के जाम ..

बेगैरत देश में शहीदों के अपमान की पराकाष्ठा ...

बिहार में मुजफ्फरपुर के चंदवारामें शहीदों की चिता पर हर वर्ष मेले तो नहीं लगते, लेकिन हर दिन यहां जाम जरूरत टकराए जाते हैं..

देश की स्वतंत्रता के लिए क्रांति की मशाल जलाने वाले खुदीराम बोस का जहां दाह संस्कार किया गया था, वह स्थान सरकार की उपेक्षा का शिकार है। कहा जाता हैकि शाम को यह स्थल मयखाने में तब्दील हो जाता है।देश में अंग्रेजों के खिलाफ क्रांति की लौ जलाने वाले खदीराम बोस को 11 अगस्त 1908 को मुजफ्फरपुर जेल में फांसी दी गई थी। खुदीराम बोस का जहां अंतिम संस्कार किया गया था, वह स्थान अब भी सरकार की उपेक्षा का शिकार है।
आलम यह है कि वीरान पड़े इस स्थल पर शाम में खुलेआम शराब बेचीं जाते हैं। अब लोग इस पर कहते हैं, यहां शहीदों की चिता पर हर वर्ष मेले तो नहीं लगते, लेकिन हर दिन यहां जाम जरूरत टकराए जाते हैं। खुदीराम बोस का अंतिम संस्कार मुजफ्फरपुर जेल से करीब दो किलोमीटर दूर चंदवारा में किया गया था।

Monday, August 13, 2012

इ गवर्नेस का खाका तैयार

Prabhat Khabar 10 august
मुजफ्फरपुर : इंटरनेट के माध्यम से सरकारी योजनाओं को अमली जामा पहनाने के लिए इ डिस्ट्रीक्ट गवर्नेस की कवायद शुरू हो गयी है. सोसाइटी एक्ट के तहत निबंधन के लिए जिलाधिकारी की अध्यक्षता में 23 सदस्यीय कमेटी का गठन किया है.
जिसमें एसएसपी राजेश कुमार के साथ अन्य विभाग के अधिकारी है. इसके अलावा डीएम द्बारा नामित तीन सदस्य, वसुधा केंद्र के चार संचालक के साथ महिला सशक्ति करण एवं अधिकार के क्षेत्र में कार्य कर रही महिलाओं को शामिल किया गया है. बता दें कि इ गवर्नेस का उदेश्य सरकारी योजना एवं सेवओं में पारदर्शिता के साथ गति लाना है.
ऐसे मिलेगी सुविधा
ई डिस्ट्रीक्ट गवर्नेस के तहत पंचायत से लेकर जिला स्तर तक की सरकारी योजनाएं ऑन लाइन हो जायेगी. योजना की रूप रेखा से लेकर इसे लागू करने के सभी दिशा निर्देश के साथ कार्य की प्रगति की जानकारी इंटरनेट पर उपलब्ध होगी. यही नहीं सभी तरह की सरकारी प्रमाण पत्र भी नेट के माध्यम से उपलब्ध होगा.
इ गवर्नेस सोसाइटी के सदस्य
जिलाधिकारी (चेयर मैन), पुलिस अधीक्षक, राज्य ई गवर्नेस के प्रतिनिधि, अपर समाहर्ता, डीडीसी, कार्यपालक अभियंता पीएचइडी, कार्यपालक अभियंता बिजली, डीइटी बीएसएनल, लीड बैंक मैनेजर, सिविल सजर्न, ट्रेजरी ऑफिसर, शिक्षा पदाधिकारी, जिला सूचना पदाधिकारी, पंचायती राज पदाधिकारी, भूमि व राजस्व विभाग के उपसमाहर्ता, आपूर्ति पदाधिकारी, आइटी मैनेजर, एक एनजीओ, डीएम की ओर से नामित तीन सदस्य, एससीए के प्रतिनिधि, चार वसुधा केंद्र संचालक, महिला जागरू कता व सशक्तीकरण के लिए कार्य करने वाली चार महिला प्रतिनिधि बतौर सदस्य इ गवर्नेस सोसाइटी में शामिल होंगे.

माओवादी : लेवी के लिए आरटीआइ का सहारा

मुजफ्फरपुर : माओवादी विकास कार्यो में लेवी वसूलने के लिए नया फंडा अपना रहे हैं. सूचना के अधिकार के तहत योजनाओं का इस्टीमेट पता करते हैं. इसी के आधार पर ठेकेदारों से लेवी की वसूली करते हैं.
अगर कोई ठेकेदार इस्टीमेट की गलत जानकारी देता है, तो माओवादी उसे इस्टीमेट के साथ लेवी के लिए पत्र भेजते हैं. साथ ही आगे से इस तरह से नहीं करने की धमकी देते हैं. साथ ही जुर्माना भी संबंधित ठेकेदार से वसूला जाता है.हाल में ऐसा ही मामला पड़ोसी जिले शिवहर में सामने आया था, जिसमें एक योजना का इस्टीमेट चार करोड़ रुपये था, लेकिन ठेकेदार ने माओवादियों को दो करोड़ का ही इस्टीमेट बताया.
इसी के आधार पर लेवी की राशि दी. इसके बाद माओवादियों ने आरटीआइ के तहत इस्टीमेट की जानकारी ली और संबंधित ठेकेदार को धमकी भरा पत्र भेजा गया. इसमें उसकी हत्या तक की बात कही गयी थी. सूत्रों की मानें, तो ठेकेदार ने जुर्माने के साथ चार करोड़ पर लेवी की राशि अदा की, तब जाकर माओवादी माने.नाम नहीं छापने की शर्त पर एक ठेकेदार ने बताया, माओवादी, जब से आरटीआइ का सहारा लेने लगे हैं, तब से हम लोग सतर्क हो गये हैं.
अब तय इस्टीमेट पर लेवी की राशि कम करने की मांग माओवादियों से की जाती है. इस पर वह मान जाते हैं, कभी-कभी तय दस फीसदी लेवी की जगह पांच से सात फीसदी ही लेवी देनी पड़ती है.माओवादियों के आरटीआइ के इस्तेमाल से प्रशासनिक अधिकारी हैरत में हैं.इनका कहना है, अगर माओवादी ऐसा कर रहे हैं, तो उसे रोक पाना मुश्किल काम है, क्योंकि सरकारी नियम के मुताबिक जानकारी देना हमारी मजबूरी है. जब कोई जानकारी मांगता है, तो वह उसका क्या उपयोग करेगा, यह नहीं पूछा जाता है.
-रवीन्द्र कुमार सिंह

Friday, August 10, 2012

वसुधा संचालक किसी अन्य देश से होते तो शायद सरकार काम देती

किसी देश की सीमा पार करने पर....

• यदि आप "चीनी" सीमा अवैध रूप से पार करते हैं तो, आपका अपहरण कर लिया जायेगा और आप फिर कभी नहीं मिलोगे.... !!

• यदि आप "क्यूबा" की सीमा अवैध रूप से पार करते है तो... आपको एक राजनीतिक षडयंत्र के जुर्म में जेल में डाल दिया है....!!

• यदि आप "ब्रिटिश" बॉर्डर अवैध रूप से पार करते हैं तो, आपको गिरफ्तार किया जायेगा, मुकदमा चलेगा, जेल भेजा जायेगा और अपने सजा पूरी करने के बाद निर्वासित....!!

अब....
• यदि आप "भारतीय" सीमा अवैध रूप से पार कर गए थे, तो तुम्हें मिलता है .....
 एक राशन कार्ड, एक पासपोर्ट (यहां तक कि एक से अधिक - यदि आप थोड़ा बहुत चालाक होते हैं)

एक ड्राइवर का लाइसेंस, मतदाता पहचान कार्ड, क्रेडिट कार्ड

सरकार रियायती किराए पर आवास, ऋण एक घर खरीदने के लिए

मुफ्त शिक्षा, मुफ्त स्वास्थ्य देखभाल

... और वास्तव में ..... भ्रष्ट नेताओं का चुनाव करने के लिए मतदान का अधिकार...!!

Some BDO have been arrested by CID

 I think BDO Rampur distt. Kaimur has intention to all VASUDHA KENDRA. If one is doing mistake then why BDO blaming to all VASUDHA KENDRA? Some BDO have been arrested by CID then we should blame to all BDOs of Bihar State. Mr. BDO Rampur you are wrong here. pls say sorry to all VASUDHA KENDRA.
  

Friday, July 20, 2012

अब तक नहीं खुले 2000 वसुधा केंद्र

अब तक नहीं खुले 2000 वसुधा केंद्र

20/07/2012 Prabhat Khabar, Patna, Muzpur, Gaya

पटनाः छह साल बीत गये राज्य में करीब दो हजार वसुधा केंद्र नहीं खुल पाये. सरकार ने 2007 में इंटरनेट के जरिये सरकारी योजनाओं की जानकारी और प्रमाणपत्र देने के लिए साढ़े आठ हजार वसुधा केंद्र आरंभ करने की घोषणा की थी. 2012 के छह माह से अधिक बीत गये, अब भी दो हजार वसुधा केंद्र नहीं खुल पाये हं.. जिन जगहों पर यह केंद्र खुले, उनकी नियमित मॉनीटरिंग नहीं हो रही.
कई जगहों पर यह ठीक से काम नहीं कर रहा. अधिकतर केंद्रों पर बिजली नहीं होने और महंगे सोलर उपकरण के कारण काम ठप है.
वहीं कम पैसे में कंप्यूटर के जानकारों का अभाव भी इस योजना को गति नहीं पकड़ने दे रहा.
सरकार ने पायलट प्रोजेक्ट के तहत चार जिलों में डिस्ट्रिक्ट-इ पायलट योजना शुरू की, पर यहां भी पूरी तरह काम आरंभ नहीं हो पाया.जरूर, कुछ केंद्र ऐसे भी हैं, जहां बेहतर काम हो रहे हं.. इन केंद्रों पर आम आदमी इंटरनेट के जरिये शादी के कार्ड भेजने से लेकर हवाई जहाज व रेल टिकट तक आरक्षित करा रहे हैं.
फोटो स्टेट व स्टूडियो से चल रहा काम
सूचना एवं प्रावैधिकी विभाग की निगरानी में 8463 वसुधा केंद्र की स्थापना की जानी थी. इनमें अब तक 8138 स्थानों की पहचान हो चुकी है. विभाग का दावा है कि 6600 वसुधा केंद्रों से लोग सरकार की सेवाएं ले रहे हैं. वहीं, वास्तविकता यह है कि कई जिले में स्थापित वसुधा केंद्रों पर अब भी समुचित सुविधा उपलब्ध नहीं हो सकी है.
मुजफ्फरपुर में संचालक सरकारी काम के अभाव में फोटो स्टेट व स्टूडियो का काम कर रहे हैं. बेगूसराय में प्रमाणपत्र नहीं मिल रहे हैं. नवादा के 187 केंद्रों में मात्र 50 ही सक्रिय हैं.
-कुछेक जिलों की स्थिति बेहतर
हालांकि, सासाराम, नालंदा सहित कुछेक जिले में आम लोग इन केंद्रों का लाभ उठा रहे हैं. विगत विधानसभा चुनाव में निर्वाचन आयोग ने कई बूथों के मतदान का सीधा प्रसारण वसुधा केंद्रों की सहायता से किया. औसतन हर महीने वसुधा केंद्रों से 64 हजार लोग लाभ उठाते हैं.
वसुधा केंद्र पब्लिक -प्राइवेट-पार्टनरशिप के तहत काम कर रहा है. सरकार, प्राइवेट कंपनी व ग्रामीण उद्यमी के माध्यम से एक पंचायत या हर छह - सात गांव पर एक आइटी संसाधनों से लैस केंद्र की स्थापना की जानी है. केंद्र के संचालकों को यह अधिकार दिया गया है कि वे किसी भी सरकारी सेवा के लिए सेवा शुल्क वसूल सकें. राशि राज्य सरकार की ओर से निर्धारित की गयी है. सेवा शुल्क का एक हिस्सा वसुधा केंद्रों की स्थिति सुधारने पर खर्च किया जाता है.
-निगरानी व्यवस्था हो कारगर
वसुधा केंद्रों में निगरानी का अभाव है. कहने को हर जिले में डिस्ट्रिक्ट इ-गवर्नेस सोसाइटी काम करती है. इसके अध्यक्ष जिलाधिकारी या उपविकास आयुक्त होते हैं. एजेंसियों ने भी जिला मुख्यालय में अपना कार्यालय खोल रखा है. इसमें जिला प्रबंधक, एकाउंट प्रबंधक, आइटी इंजीनियर, सर्विस एक्सक्यूटिव सहित कुल छह कर्मी होते हैं. काम बढ़ा, तो हर 30 केंद्र पर एक एक्सक्यूटिव का प्रावधान है. विभाग के प्रमुख खुद समय-समय पर इसकी समीक्षा करते हैं, पर जमीनी स्तर पर यह उतना कारगर नहीं है. केंद्र के संचालकों की मानें, तो अगर कोई खराबी आ जाये, तो एजेंसी पहल नहीं करती है. इसमें सुधार तभी हो सकता है, जब एजेंसियों के कार्यकलापों पर नजर रखी जाये. समय-समय पर वसुधा केंद्रों के लाभुकों से फीडबैक लिया जाये. वैसे आइटी विभाग ने स्टेट परपस विकिल शुरू करने का निर्णय लिया है, जो पूरे प्रदेश में घूम-घूम कर वसुधा केंद्राें की स्थिति का जायजा लेंगे.
-तुरंत देख लिया मैट्रिक का रिजल्ट
सासाराम के ईश्वरचंद्र सिंह का बेटा मैट्रिक की परीक्षा में शामिल हुआ. रिजल्ट आने की सूचना मिली. पंचायत मोहद्दीगंज में स्थापित वसुधा केंद्र गये. बिहार बोर्ड की वेबसाइट पर रिजल्ट देख लिया. अपने जमाने को याद करते हुए ईश्वरचंद्र कहते हैं - हमें दूसरे दिन जिला मुख्यालय में जाकर अखबार खरीदने के बाद ही रिजल्ट की जानकारी मिली थी. वे कहते हैं कि अभी जो केंद्र खुले हैं, उसका लाभ ग्रामीणों को मिल रहा है. जाति, आय व आवासीय प्रमाणपत्र के लिए भी प्रखंड मुख्यालय का चक्कर नहीं काटना पड़ रहा है. अपने पंचायतों में ही स्थापित वसुधा केंद्र के माध्यम से लोग प्रमाणपत्रों के लिए आवेदन दे रहे हैं. तय अवधि में उन्हें प्रमाणपत्र बिना कोई परेशानी के प्रखंड मुख्यालय से मिल रहे हैं.
16 सौ रुपये दे कर सरकार हो जा रही निश्चिंत
राष्ट्रीय इ-शासन योजना के तहत केंद्र सरकार ने सितंबर, 2006 में इस योजना की शुरुआत की. बिहार को वसुधा केंद्र के लिए 80 करोड़ रुपये आवंटित किये गये. इसमें से 32 करोड़ रुपये राज्य सरकार ने खर्च किये. इस राशि में से हरेक केंद्र को सहायता के तौर पर औसतन 1500-1600 रुपये दिये जाते हैं. बाकी रकम बैंकों से कर्ज के रूप में मिलता है. शुरू में वसुधा केंद्रों से रेलवे, हवाई जहाज, पीडीएस कूपन आदि की सेवाएं मिलती थीं. लोक सेवा का अधिकार कानून आने के बाद जाति, आय व आवासीय आदि प्रमाणपत्र बनाये जाने लगे.

Monday, July 16, 2012

डाक्टर अब्दुल कलाम के विजन २०२०

सेवा में,
प्रभात खबर, बिहार 
बिषय : वसुधा केंद्र के सम्बन्ध में !

महाशय,
            डाक्टर अब्दुल कलाम   के विजन २०२० से प्रेरित हो केंद्र सरकार राज्य सरकार के साथ मिल  कर रास्ट्रीय ई गोवार्नेंस योजना के तहत CSC  ( कमान सर्विस सेंटर) की स्थापना देश के सभी पंचायतो तथा नगर निकाय के वार्डो में सन २००७  में शुरुआत की ! CSC स्थापित करने की  जिम्मेवारी PPP (पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप) मोड के तहत देश में भिन्न - भिन्न कम्पनियों को दिया गया ! CSC देश में एक प्रारूप में काम  करता है , लेकिन राज्य सरकारों ने इसका नाम अपने राज्यों में भिन्न - भिन्न रखा है! जैसे - बिहार में वसुधा केंद्र , झारखण्ड में प्रज्ञा केंद्र असम में अरुणोदय, उत्तर प्रदेश में जन सेवा केंद्र इत्यादि  नमो से जाना जाता है ! पुरे देश में करीब १००००० तथा बिहार के सभी पंचायतों में करीब ८४००  CSC स्थापित करने का लक्ष्य रखा गया! जिसमे बिहार राज्य करीब ९५% वसुधा केन्द्रों को स्थापित कर चूका है 
* बिहार सरकार द्वारा सन २००७ में तिन कम्पनियों १. स्रेई सहज २. जूम कम्युनिकशन  तथा ३. सार्क के साथ राज्य के सभी पंचायतो में वसुधा केंद्र स्थापित करने हेतु एक एम् यु एम् साइन किया  ! इन कम्पनियों को SCA (सर्विस सेंटर एजेंसी ) कहा जाता है, जिनकी जिम्मेवारी वसुधा केन्द्रों के संचालन हेतु एवं अच्छे से रख रखाव करने की होती है ! तथा राज्य सरकार की स्वायत एजेंसी BELTRON इसकी निगरानी तथा निर्देशित करने की काम करता है ! 
* बिहार के  तीनो SCA में सबसे ज्यादा ५५६५  वसुधा केंद्र स्थापित करने की जिम्मेवारी   स्रेई सहज कम्पनी को दिया गया है!
 * स्रेई सहज द्वारा मार्जिन मनी के रूप में ३२००० + १२००० रुपया की DD वसुधा केंद्र संचालकों (VLE ) से लेकर दो लाप टॉप, एक वेब कैमरा , कलर प्रिंटर, फोटो कैमरा, भी सेट, चेयर, टेबल, आपात उर्जा उपकरण उपलब्ध किया गया !
* केंद्र स्थापित करने हेतु आवेदक का न्यूनतम योग्यता मैट्रिक उतीर्ण,तथा एक 10x15 " का कमरा पंचायत के मुख्यालय ग्राम में होना अनिवार्य  रखा गया है.
* कंपनी द्वारा वसुधा संचालकों को वादा था की केंद्र खुलने के ६ माह पश्चात् २०००० रु मासिक आमदनी केन्द्रों पर  उपलब्ध होने वाले सरकारी तथा गैर सरकारी सेवाओं  को आम नागरिकों को उपलब्ध कराने पर प्राप्त  होगा !
 * सरकारी सेवाओं में खास कर जाती, आय, निवास, जन्म-मृत्यु, चालक, खाता - खतौनी  इत्यादि प्रमाण पत्र , जन शिकायत, थर्ड पार्टी मोनिटरिंग, बैंकिंग सेवा, शामिल है ( जिसे G2C  की संज्ञा मिली है )जो सेवाएँ आज तक वसुधा को नहीं मिला, हाल ही में इन सेवायों को नालंदा जिले में पिलोत प्रोजेक्ट  के तौर पर  ऑनलाइन शुरू किया गया लेकिन ये दुर्भाग्य कहा जायेगा की काम तो शुरू हो चूका लेकिन संचालकों को इन सेवाओं को आम जन को उपलब्ध कराने के पश्चात् भुगतान की प्रक्रिया को काफी  जटिल कर दिया गया ,या यूँ कहे की कम्पनी के इशारे पर  इस प्रक्रिया को अपनाया गया !
* पिछले डेड़  वर्षों से प्रखंड स्तर पे जन वितरण प्रणाली के कूपनों की ऑनलाइन  स्कान्निंग का काम वसुधा केन्द्रों द्वारा काफी कम दर (००.०४ पैसा / कूपन ) पर किया जा रहा है, जिसकी भुगतान आज तक राज्य सरकार द्वारा नहीं किया गया ! जो खेद की बात है ! 
  * समय - समय पे संचालकों द्वारा राज्य स्तर पे व्यापक धरना प्रदर्शन तथा बेल्ट्रान के समक्ष भूख हड़ताल किया गया ! जिसको ले सरकार के आला अधिकारी वसुधा को काम देने हेतु तैयार हो सबंधित काम को ऑनलाइन कराने हेतु कई तरह के पत्रों से  जिलाधिकारियों को निर्देश दिया  ! लेकिन ये दुर्भाग्य कहा जायेगा की उन जारी पत्रों के उपर कोई भी जिला पदाधिकारी  ने गंभीरता से ध्यान नहीं दिया ! जिसका दुष्परिणाम है की आज संचालक बेरोजगार बैठा !
* आज तक कोई भी ग्रामीण स्तरीय संचालक लाभ के बजाय नुकसान ज्यादा झेला है, अगर थोरा बहुत लाभ प्राप्त भी हुआ है तो वो शहरी क्षेत्रों के संचालकों को प्राप्त हुआ है, वो भी सरकारी सेवाओं से नहीं बल्कि प्राइवेट सेवाओं को बेच कर हुआ है ! जैसे जीवन तथा वाहन बिमा पोलिसी, नेट मोबाइल रिचार्ज, रेलवे टिकट इत्यादि बेच कर ! सिर्फ इन सेवाओं को बेचना ग्रामीण संचालकों के लिए टेडी खीर है, 
* स्रेई सहज कम्पनी ने जो ऋण संचालकों को उपलब्ध   करया था उस समय वादा था की, सेवाओं के बिक्री के पश्चात् प्राप्त आय से प्रदत ऋण की किस्तों में भरपाई करनी होगी! कम्पनी तथा सरकार को भालिभातीं मालूम है की वसुधा को कोई भी सरकारी काम  नहीं दिया गया, कोई आमदनी नहीं है, लेकिन हाल ही में स्रेई  सहज कम्पनी द्वारा उन सभी वसुधा संचालको को ऋण अदायगी की नोटिस भेजा गया है !  श्रीमान ये सरासर अन्याय नहीं तो और क्या है की हमारे उज्जवल भविष्य को कम्पनी और सरकार द्वारा झूठ बोल कर केंद्र लेने हेतु प्रेरित किया गया ! और अब न्यालय में खीचने की धमकी स्रेई सहज के बिहार हेड द्वारा दिया जा रहा है ! आखिर हमें ये ऋण अपना घर बनाने हेतु तो नहीं दिया गया था ! जिस कार्य हेतु दिया गया वो काम आज तक मुय्यस्सर नहीं हुआ ! काम मिले , आमदनी हो तो संचालक  क्यूँ ऋण की अदायगी नहीं करेगा?
*सरकार तथा कम्पनी के गलत नीतियों के कारन राज्य से अनेकों संचालक रोजगार हेतु अन्यत्र पलायन कर चुके हैं, अब काम भी अगर मिलता है तो कम्पनी द्वारा सभी प्रदात उपकरण बेकार की स्थिति में आ चूका है ! चुकी इन उपकरणों को मिले करीब चार वर्ष हो चुके हैं ! अब काम भी मिले तो नया उपकरण हर हल में लगाना अनिवार्य होगा जो संचालकों की वश की बात नही होगी ! जिसपे राज्य सरकार को गंभीरता से सोचना होगा ! 
* सरकारी बाबु लोगो ने सर्कार के आदेशोपरांत कुछ सेवाओं को वसुधा को देने हेतु आदेश तो जारी किया लेकिन  जमीनी स्तर की सच्चाई यही है की जिला, प्रखंड तथा पंचायत स्तर पर आदेशित सेवाओं की सुविधा को बहल नहीं किया गया ! चुकी इन्हें डर है की शायद इन निचे स्तर के बाबुओं की भ्रष्ट्राचार की पोल पंचायत स्तर पर खुल सकती है, जिससे उन्हें परेशानी की सामना करना पड़ सकता है ! उदाहरण   :- 
(१) सुचना प्रावैधिकी विभाग के सचिव का पत्र संख्या ५३८/ २१/ ०७/२००८  जो सभी प्रमंडलीय आयुक्त तथा सभी जिला पदाधिकारियों को भेजा गया, जो वसुधा केन्द्रों को सरकारी काम उपलब्ध करने से सम्बंधित है !
(२) ग्रामीण विकास विभाग के प्रधान सचिव का पत्र संख्या १४७४१  / १२/११/ २००८  जो सभी जिला -प्रखंड वि. अंचल वि. पदाधिकारी,  तथा उप विकास आयुक्त को भेजा गया ! जो वसुधा केन्द्रों को सरकारी सेवा मुहैया करने हेतु सम्बंधित है 
(३) बेल्ट्रान का पत्र संख्या ३२६० / २१/०७/२०१० जो सभी जिलाधिकारियों तथा तीनो SCA को लिखा गया ज. वि. प्र. की सेवा को उपलब्ध कराने के लिए   
(४) बेल्ट्रान का पत्र संख्या २८१०/  २५/०६/२०१० जो सभी जिलाधिकारी, तथा प्रधान सचिव आई.टी. को लिखा गया वसुधा केन्द्रों को सेवा उपलब्ध कराने हेतु 
(५) सर्कार के प्रधान सचिव - सुचना प्रावैधिकी का पत्र संख्या ७१/२०१०/२३९ जो सभी प्रधान सचिव / सचिव/ जिलाधिकारी को लिखा गया वसुधा केन्द्रों को नरेगा की ऑनलाइन डाटा एंट्री के कार्य करने के लिए 

श्रीमान दुःख के साथ कहना पड रहा है की उपरोक्त पत्रों का धरातल पे कोई परिणाम नहीं निकला! ये सभी पत्र सिर्फ और सिर्फ कार्यालय / विभागों की फाइलों की शोभा बढ़ाने का काम भर किया ! उपरोक्त पत्रों से वसुधा केन्द्रों को कुछ नहीं मिला जो आपके स्तर से जाँच का बिषय है ! 

हाँ एक चीज जरुर हुई है की राज्य सरकार को प्रिंट मीडिया तथा मुख्य मंत्री के जगह - जगह दिए गए भाषणों से आम जनता को कभी कभी मन बहलाने का मौका आवश्य मिला होगा ! 
जैसे " हम एक ऐसे बिहार की परिकल्पना को साकार करेंगे जहाँ  ग्रामीणों के लिए सरकारी कार्यालय को उनके गाँव में शिफ्ट किया जायेगा! वह एक  ऐतेहासिक दिन होगा जब बाबुओं से परेशान आम आदमी गाँव के ही वसुधा केन्द्रों से तमाम सेवाएँ प्राप्त करेगा" ( सन २००८ में रोहतास के डिहरी ऑन सोन के पड़ाव मैदान के  एक भाषण में नितीश कुमार जी का उदगार) 
 
ये वही स्रेई सहज कम्पनी है जो धोखे से वसुधा संचालकों की करोड़ों रूपये वेब पोर्टल से गायब कर चुकी  है, जिसकी सुचना मुख्य मंत्री को समय समय पे जनता  दरबार में आवेदन के माध्यम दी गयी है , लेकिन करवाई नगण्य रहा !

हम सभी संचालक आपसे नम्र निवेदन करते हैं की आप शीघ्र इस विकराल समस्या की ओर अपना ध्यान आवश्य देंगे! 
आपका विश्वासभाजन

कुमार रवि रंजन 
प्रवक्ता 
वसुधा केंद्र संचालक संघ - बिहार

Saturday, May 26, 2012

सरकारी कार्यो पर होगी वसुधा केन्द्रों की नजर

कार्यालय प्रतिनिधि, सासाराम          (दैनिक जागरण) 
ग्रामीण क्षेत्रों में चल रहे विकास कार्यो पर अब वसुधा केन्द्रों का भी पहरा पड़ेगा। पहले पीडीएस अब इन्हें मनरेगा के कार्यो की इलेक्ट्रानिक रिपोर्टिग की जवाबदेही सौंपी जा रही है।
वसुधा केन्द्र के जिला समन्वयक उपेन्द्र कुमार सिंह की मानें तो मनरेगा में मस्टर रोल रजिस्ट्रेशन, जाब एप्लिकेशन, फोटो अपलोड, जल संरक्षण, लघु सिंचाई जैसी योजनाओं की इलेक्ट्रानिक रिपोर्टिग की जानी है। जिसके लिए अलग-अलग दर निर्धारित है। इसके पूर्व जन वितरण प्रणाली के दुकानों पर आने वाले राशन-किरासन कूपन का स्कैनिंग कर आनलाइन रिपोर्टिग का कार्य मिला था। हालांकि आपूर्ति विभाग की उदासीनता व गड़बड़ी उजागर होने के भय से अधिकारी इस कार्य में रुचि नहीं लिए। और न ही किए गए कार्यो का भुगतान किया गया।
वसुधा केन्द्र के नोडल वीएलई कुमार रविरंजन कहते हैं कि चार साल पूर्व वसुधा केन्द्र के नाम पर हजारों रुपये बेरोजगारों से जमा कराए गए। लेकिन उन्हें अब तक कोई काम नहीं मिला।

Friday, May 11, 2012

दो करोड़ साठ लाख भारतीय विदेशों मे


जी हाँ करीब दो करोड़ साठ लाख भारतीय यूरोप, एशिया, और अफ्रीका के विभिन्न देशों मे रह रहे है, और अपने बुद्धि और कुशलता से वहा कि अर्थव्यवस्था मे अपना योगदान दे रहें है। भारत के कुशल और बुद्धिमान व्यक्तियों ने विदेशो मे भारत का खूब नाम रोशन किया है। इक्कीसवीं सदी मे पूरे विश्व कि निगाह भारत पर है । आईये देखे भारतीयों कि जनसँख्या विदेशों मे :-

39,50,000 भारतीय एशिया मे है
47,00,000 भारतीय यूरोप मे व्
6,00,000 भारतीय अफ्रीका मे है ।

विभिन्न देशों मे भारतीयों कि संख्या इस प्रकार है :
अमेरिका : 19 लाख
आस्ट्रेलिया : 2 लाख 30 हज़ार
ब्रिटेन : 1 लाख 60 हज़ार
जर्मनी : 80 हज़ार
फ्रांस : 75 हज़ार
इटली : 71 हज़ार
रूस : 16 हज़ार

#अमेरिका मे कुल आबादी मे से सिर्फ़ ३ % आबादी भारतियों कि है लेकिन अमेरिका कि अर्थव्यवस्था और विकास मे करीब ५०% योगदान भारतियों का है ।
#अमेरिका मे 38% डाक्टर भारतीय मूल के है।
#36% भारतीय वैज्ञानिक नासा मे है।
#आई टी के क्षेत्र मे 12% वैज्ञानिक भारतीय है।
#अमेरिका कि कुल समूह जातियों मे भारतीयों मे सर्वोच्च शैक्षणिक योग्यता है। कुल भारतीयों मे 67% भारतीयों के पास स्नातक या उससे उच्च डिग्री है जबकि राष्ट्रीय स्तर पर यह प्रतिशत सिर्फ़ 28% है।
#अमेरिका के कुल होटलों मे से ३५% भारतीयों मालिक के है और सस्ते लौज मे ५०% भारतीयों के है । जिसकी कुल बाजार लागत करीब ४० अरब डालर है।
#अमेरिका के हर दस मे से एक भारतीय करोड़पति है । कुल अमीरों मे १० % अमीर भारतीय है ।
#अमेरिका मे रहने वाले कुल भारतीयों मे से 40% भारतीय के पास परास्नातक, डाक्टरेट या अन्य पेशेवर डिग्री है, जो कि अमेरिका के राष्ट्रीय स्तर से पाँच गुना अधिक है।

अमेरिका ही नही विश्व के कई देशों मे भी भारतीयों ने अपना परचम लहराया है।
है ना गर्व कि बात? केसरवानी समाज के भी सैकडों लोग विदेशों मे विभिन्न पेशे और पदों पर आसीन है । आशा है कि जल्द ही भारत एक महाशक्ति के रूप मे उभर कर आएगा।

साभार : केशर वाणी



 


Monday, May 7, 2012

ई-गवर्नेस की दिशा में एक क्रांतिकारी पहल

सूबे का पहला ई डिस्ट्रिक्ट बना नालंदा


केंद्र संचालकों की जगी आस
Updated on: Sat, 05 May 2012 10:10 PM (IST)      




सूबे का पहला ई डिस्ट्रिक्ट बना नालंदा
बिहारशरीफ, जागरण प्रतिनिधि : ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले लोगों के लिए एक अच्छी खबर है। अब उन्हें विभिन्न प्रकार के प्रमाणपत्र बनवाने के लिए ब्लाकों व अंचलों के चक्कर नहीं काटने पड़ेंगे। इसके लिए राज्य सरकार ने पंचायत स्तर पर ही वसुधा केन्द्र के माध्यम से सारी सुविधाएं उपलब्ध करा दी है। शनिवार को बेलट्रान के प्रबंध निदेशक अतुल सिन्हा व डीएम संजय कुमार अग्रवाल ने परियोजना की यहां विधिवत शुरूआत की। मालूम हो कि कुछ दिन पूर्व ही राज्य में सबसे पहले नालंदा जिले में आंगनबाड़ी केंद्रों की लाइव मानीटरिंग सिस्टम की शुरूआत हुई है। दोनों महत्वपूर्ण प्रशासनिक पहल में यहां के वर्तमान डीएम संजय कुमार अग्रवाल की भूमिका काफी उल्लेखनीय रही है। डीएम ने बताया कि नालंदा बिहार का ऐसा पहला जिला बन गया है जिसमें डिजिटल हस्ताक्षर के माध्यम से प्रमाणपत्र जारी किए जाएंगे। उन्होंने बताया कि जिले की सभी 250 पंचायतों में वसुधा केन्द्र कार्य कर रहे हैं। इस कारण अब आवेदकों को प्रखंड कार्यालय आने की आवश्यकता नहीं है। अब उन्हें वसुधा केन्द्र पर ही आवेदन देना है और वहां से ही डिजिटल हस्ताक्षरयुक्त प्रमाणपत्र उपलब्ध हो जायेंगे। यही नहीं आवेदन देने के 21 दिन के भीतर आवेदक इंटरनेट से प्रमाण पत्र की वस्तुस्थिति का पता लगा सकेंगे। उन्होंने कहा कि डिजिटल हस्ताक्षरयुक्त प्रमाण पत्र निर्गत करने की सुविधा भारत में मात्र दो से चार जिलों में ही है। ई-गवर्नेस की दिशा में यह एक क्रांतिकारी प्रशासनिक पहल है। नालंदा जिला प्रशासन विगत दो वर्षो से ई-गवर्नेस की तैयारी की दिशा में संजीदगी से प्रयासरत था। खुद डीएम इसे अपनी निगरानी में व्यवस्थित करने में जुटे थे। डीएम ने बताया कि इस परियोजना से सबसे अधिक ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले लोगों को फायदा मिलेगा। बेलट्रान के प्रबंध निदेशक अतुल सिन्हा ने कहा कि प्रत्येक ब्लाक को ब्राडबैंड से जोड़ा जायेगा। ग्रामीणों को कम शुल्क में भी अपने ही पंचायत के वसुधा केन्द्र से जाति, आवास, आय, ओबीसी, चरित्र प्रमाण पत्र के साथ-साथ विकलांगता पेंशन और विधवा पेंशन आदि की सुविधा उपलब्ध हो सकेगी। सोमवार से यह योजना नालंदा जिले में अमल में आ जाएगी।
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इस उपलब्धि के लिए अगर हम बिहार शरीफ के जिलाधीश को जितनी बधाइयाँ समर्पित करें वो नाकाफी होगी ! नालंदा के जिला पदाधिकारी संजय कुमार अग्रवाल जी को हम सभी वसुधा केंद्र संचालक तहे दिल से अपनी आभार व्यक्त करते हैं ! यह सफलता इनकी लगन और कड़ी मेहनत को दर्शाता है ! अब लगता है की इनके इस प्रयास को और भी जिलों के जिलाधीश मिशाल के तौर पे लेंगे, की "कैसे गावों में इलेक्ट्रोनिक प्रशासन की लौ जलाई जाती है ? इसके पहले हम सभी संचालकों ने समय -समय पे सरकार की आँख खोलने का प्रयास किया लेकिन किसी ने ध्यान नहीं दिया !चलिए जंहा कुछ नहीं था वहां कम से कम एक उम्मीद की किरण तो दिखनी शुरू हो गयी ! इसे कहते हैं भारतीय प्रशासनिक पदाधिकारी की दिमाग की ताकत! नालंदा में वैसे भ्रष्ट्रचारी ताकतें सड़क पे मारे फिरेंगी जो कभी मासूम ग्रामीण गरीबों के जेब को कतल किया करते थे इन सेवाओं के लाभ को दिलाने के लिए !
Kumar Ravi Ranjan
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Sunday, May 6, 2012

गांव से कोसों दूर है इंटरनेट BBC

भारत के ग्रामीण इलाकों में आधे प्रतिशत से भी कम परिवारों के पास इंटरनेट की सुविधा है.
सरकारी सर्वेक्षण के अनुसार शहरों में छह प्रतिशत परिवार इंटरनेट का इस्तेमाल करते हैं.
नेशनल सेंपल सर्वे ऑर्गेनाइज़ेशन (एनएसएसओ)वर्ष 2009-10 की एक रिपोर्ट के अनुसार देश भर में केवल 0.4 प्रतिशत ग्रामीण परिवारों के पास इंटरनेट की सुविधा है.
इस रिपोर्ट के अनुसार प्रति 1000 परिवारों में केवल साढ़े तीन घरों में केवल इंटरनेट की सेवा उपलब्ध है.
रविवार, 6 मई, 2012 को 13:05 IST तक के समाचार  BBC

Friday, May 4, 2012

स्रेई सहज का " नोटिस भेजो - नोटिस भेजो" का खेल

रमण सिंह कौन जो VLe से पैसा मांगे ?
बिहार राज्य में स्रेई सहज कंपनी द्वारा सरकारी निर्देशों के पश्चात् हवाई सपने दिखा कर बिहार के भोले -भाले 6000 कंप्यूटर शिक्षित और प्रशिक्षित नौजवानों को धोखेबाजी से वसुधा केंद्र खोलवाने का काम किया गया ! सहज कंपनी ने चाइना मंडी जैसी -यूज एंड थ्रो कंप्यूटर एवं अन्य उपकरणों को सरकारी तंत्र के लापरवाही के कारण VLe को ऋण के रूप में मार्जिन मनी लेकर कर काफी उच्च दामों पे उपलब्ध कराने का काम किया ! सरकार सोती रही और "सहज" कम्पनी बिहार के वसुधा केंद्र के मासूम संचालकों को लुटती रही ! वर्तमान में 6000 हजार से ज्यादा केंद्र बिहार में खुल चुके हैं ! समय भी सात बरस से ज्यादा बीत चूका है! बिहार ने काफी लम्बे विकास के रास्ते को पार भी किया है! लेकिन वसुधा केंद्र -सहज कम्पनी तो कभी सरकार की ओर टक टकी  लगाये रहा , इस आस में की शायद सरकार और कम्पनी अपने किये वादों को पूरा कर वसुधा केन्द्रों को काम देने का सफल प्रयास करेगी,  साबुत के तौर पे वो कागज उपलब्ध है जिसमे सहज कम्पनी ने पुरे विस्तार में समझाया है  की, किस प्रकार वसुधा संचालक  - केंद्र खुलने के 6 महीने पश्चात् रुपया 20000 का
मासिक लाभ कमाएंगे! संचालकों को विश्वास करना भी लाजमी था की मुख्य मंत्री श्री नितीश कुमार ने खुद के अनगिनत भाषणों में वसुधा केंद्र से मिलने वाले सरकारी सेवाओं का जिक्र किया था ! केंद्र खुलने का शिलशिला जारी रहा एवं समय बीतता रहा !  सात साल गुजर गए , लेकिन संचालकों को 20 रुपया कमाना भी मुहाल की बात रही, घर की पूंजी लगानी पड़ी केन्द्रों को जीवित रखने के लिए ! क्या सरकार और सहज को नहीं पता की केंद्र को जीवित रखने के लिए चालक, कट्रिज, पेपर, उर्जा , नेट चार्ज एवं अन्य संसाधनों पे होने वाले खर्च को VLe द्वारा व्यक्तिगत रूप से  वहन किया जाता है ? किसको पता नहीं की एक अडाप्टर भी जलता है तो VLe  को उसके लिए 1200 रुपया खर्च करना पड़ता है ! कैमरा बिगड़ा तो हज़ार के निचे सोचना भी मुर्खता होगा की बनेगा! आज साधारण मजदुर की बेगारी भी 150 रुपया से निचे नहीं मिलती आठ घंटे के लिए ! अगर सरकार तथा सहज कम्पनी को इन सब बातों पे यकीन नहीं आता तो अपने CAG या किसी गुप्तचर संस्था से जाँच करा ले की अब तक वसुधा केंद्र संचालकों को इस केंद्र से कितना आमदनी प्राप्त हुआ है ! क्या सरकार को पता नहीं है की प्रखंड स्तर पे जन वितरण के कूपन स्कैनिंग के भुगतान सरकार के पास लंबित है, जो संचालकों को 04 पैसा प्रति कूपन के कम दर पे मिलना तय है ? क्या " स्रेई सहज " कम्पनी को इतला नहीं है की उसने बिना पूछे संचालकों का पैसा पोर्टल से अवैध रूप से हड़प लिया ? सहज ने फाल्स ई - लर्निंग का बिल बना कई संचालकों का पैसा पोर्टल से गायब किया ! जिस सम्बन्ध में देश स्तर पे सहज को बदनामी झेलनी पड़ी ! क्या सहज को मालूम नहीं की BELTRON  के निदेशक श्री के के पाठक (IAS ) ने किस प्रकार की उच्च स्तरीय जाँच बिठाया था ? अगर के० के० पाठक निदेशक के पद पे और चंद महीने रह गए होते तो शायद सहज का देशी मुखौटा चेहरे से उतर जाता ? सहज कम्पनी का मालिक देशी ( नालंदा- बिहार निवासी ) है, लेकिन इस कम्पनी की पूंजी विदेशी है ! ज्यादातर इस कम्पनी के निवेशक यूरोप से सम्बन्धित हैं ! और ये कम्पनी बड़ी कम्पनियों में शुमार की जाती है ! सहज ने जो कम्प्यूटर (विप्रो मेड ) उपलब्ध करायी उसकी वो कीमत 22000 रुपया लगाई है ! अब बात उठता है की वो कम्प्यूटर हमने किस लिए लिया था ? सीधी सी बात है की - बिजनेस परपस के लिए सहज ने हमें कम्प्यूटर तथा अन्य उपकरण उपलब्ध कराया था ! ये ग़ालिब की सच्चाई है की VLe का दिल वादों के अनुसार नहीं बहला पाया वादकारों ने !
हाल के दिनों में VLe  भाइयों की मेसेज मिलती है की, स्रेई सहज बिहार के वरीय अधिकारी रमण सिंह अपने वकालत के पढाई और अनुभव को बखूबी सहज के भला के लिए उपयोग कर रहे हैं ,संचालकों  पर नोटिस भेज कर कम्पनी के चहेते बनने की कोशिश कर रहे हैं ! नोटिस में जीकर है की ब्याज सहित दिए गए मूलधन को संचालक शीघ्र लौटाए ! नहीं तो क़ानूनी करवाई सभव हो सकती है !
                                                    रमण सिंह जी " सौ चूहा खा के बिल्ली चली हज को "! किस लिए और किस करार पे आपने नहीं बल्कि कम्पनी ने ये ऋण संचालकों को दिया था? क्या सहज ने ये रकम हमे खेती करने के लिए दिया था ? क्या ये ऋण हमे बच्ची की शादी करने हेतु शुद पे मिला था ? या फिर ये रकम संचालक के बच्चे को आई० आई० टी० कराने हेतु दिया गया था ? अगर हाँ तो वो एकरारनामा की प्रति भी साथ में VLe को भेज देते, जिसमे इन बातों की जिक्र होती !
                                               रमण सिंह जी ग़ालिब की उक्ति आप पे सटीक उद्धृत मालूम पड़ती है की " हमे मालूम है ज़माने की हकीकत लेकिन ग़ालिब, दिल बहलाने का ख्याल अच्छा है "! शायद रमण सिंह जी को कार्यालय में उस दिन काम नहीं रहा होगा सो, टाइम पास या दिल को बहलाने के लिए " नोटिस भेजो - नोटिस भेजो" का चोर सिपाही जैसा खेल - खेला  होगा मनोरंजन के रूप में ? 
 रमण सिंह के बारे में मैं सुन रखा था की बड़े ही तेज तरार किसम के व्यक्ति हैं ! लेकिन ये नोटिस वाली खबर हमें मजबूर करता है इनको शातिर मानने के लिए ! हमें सारा सामान लोन के रूप में पंचायतों में कथित सरकारी सेवाओं को आम जनता तक  कंप्यूटर और इंटरनेट के माध्यम से पहुचाने हेतु दिया गया था ! और उससे प्राप्त आमदनी के हिस्से से ऋण राशी को किश्तानुसार भुगतान करना था ! अब रमण सिंह बताएं की VLe लोगों का पोर्टल बिजनेस के रूप में कितना खर्च और आमदनी बता रहा है ? अगर कमाई हुई है तो बताया जाये, सभी संचालक आपको पैसे वापस करेंगे ! अगर नहीं हुई है तो फिर आप अब इस ऋण राशी के भुगतान की चिंता छोड़ दीजिये तो ही बेहतर होगा ! अब उन संचालकों का क्या होगा जो 6 साल पहले सिस्टम लिया था ? क्या अब वो सिस्टम 6 साल बाद कामयाब है ? कोई सोच सकता है की वो सिस्टम अब ज़माने  के रफ़्तार के साथ दौड़ेगा ? अब जमाना 4G का आ चूका है, और बिना काम हुए सहज 1G का रिकवरी चाहता है ! मेरा सहज कम्पनी  को सुझाव मात्र होगा की अब, सहज सरकार के ऊपर दबाव बनाये ताकि फिर से ज़माने की रफ़्तार के साथ काम करने वाला कम्प्यूटर और साजो समान संचालकों को पुनः ऋण के रूप में उपलब्ध कराया जाये ! जिससे आनेवाले दिनों में आमदनी हो सके और सहज की ऋण की भरपाई संचालकों द्वारा की जा सके !  
अगर स्रेई सहज ये सोच रहा है की उसकी पूंजी डूब रही है, तो ये कम्पनी की नादानी है! कौन लौटाएगा हमारे मुजफ्फरपुर के संचालक स्व० कृष्ण कुमार के जीवन लीला को ? जो बेरोजगारी की असहनीय दर्द को बर्दाश्त न कर आत्म हत्या कर लि ! कौन लौटाएगा स्वर्णिम कैरियर को जो VLe ने त्याग कर इस बिजनेस को अपनाया ? ऐसे कई अनुतरित सवालों की जवाब स्रेई सहज कम्पनी तथा बिहार सरकार को आनेवाले दिनों में देना होगा! ये नहीं चलेगा की आपका ही दर्द सिर्फ दर्द होता ! औरों की दर्द..................?
कुमार रवि रंजन
नोडल - VLe
रोहतास, बिहार

Sunday, April 29, 2012

आरटीपीएस : अब वसुधा केन्द्र से प्रमाण पत्र भी

                                                          Updated on: Sun, 29 Apr 2012 01:06 AM (IST)
पटना : लोक सेवाओं के अधिकार कानून (आरटीपीएस) के तहत सरकार नया प्रयोग कर रही है। इसकी शुरुआत मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के गृह जिला नालंदा से की जा रही है। आरटीपीएस वसुधा केन्द्र आवेदन लेगा और प्रमाण पत्र प्राप्त करने के बाद वसुधा केन्द्र से ही उसे उपलब्ध करा दिया जाएगा। पायलट प्रोजेक्ट के तहत नालंदा में इसे प्रारंभ करने का निर्णय किया गया है। प्रयोग सफल रहने पर दूसरे जिलों में इसका विस्तार किया जाएगा।
सेवा के अधिकार कानून के तहत ड्राइविंग लाइसेंस, राशन कार्ड सहित विभिन्न तरह के प्रमाण पत्र समय सीमा के भीतर उपलब्ध कराने की व्यवस्था की गई है। पिछले साल अगस्त से इस कानून को बिहार में लागू किया गया। उसके कुछ ही समय के बाद आरटीपीएस के तहत आनलाइन आवेदन की सेवा आरंभ की गई। प्रधान सचिव सामान्य प्रशासन दीपक कुमार ने नालंदा के जिलाधिकारी को पत्र लिखकर कहा है कि आम लोगों को बेहतर सुविधा पहुंचाने के मकसद ने निर्णय लिया गया है कि नालंदा जिले में पायलट बेसिस पर वसुधा केन्द्रों को सेवा प्रदाता के रूप में इस्तेमाल किया जाए।
पत्र में कहा गया है कि जिले में अवस्थित वसुधा केन्द्र आरटीपीएस के तहत विभिन्न नामित लोक सेवक यानी बीडीओ, सीओ की ओर से आवेदन प्राप्त कर सकेंगे। 'अधिकार साफ्टवेयर' में दी गई सुविधाओं का उपयोग करते हुए वे आवेदक को पावती पर्ची देंगे। यदि किसी सेवा के लिए कतिपय कागजात संलग्न करने की आवश्यकता हो तो उन कागजात की प्रतियां भी आवेदक से प्राप्त करेंगे। प्राप्त आवेदन-कागजात बीडीओ-सीओ कार्यालय को देंगे। लोक सेवाओं के तहत प्राप्त प्रमाण पत्र तैयार होने के बाद वे बीडीओ, सीओ कार्यालय से प्राप्त कर आवेदकों को उपलब्ध कराएंगे। इस काम के लिए वसुधा केन्द्र सूचना एवं प्रावैधिकी विभाग द्वारा निर्धारित शुल्क आवेदक से प्राप्त कर सकेंगे। पत्र की प्रति सभी जिलाधिकारियों को भेजी गई है।

Saturday, April 28, 2012

सिंचाई बिना कैसे हो जोताई

सासाराम : जिले में पटवन की पारंपरिक योजनाएं दम तोड़ रही हैं। कहीं पानी नहीं तो कहीं फ्लाप साबित हुई योजनाओं के कारण जिले की प्रति वर्ष 85111 हेक्टेयर भूमि असिंचित रह जाती है। पांच वर्ष पहले जहां पारंपरिक स्रोतों से जिले में 272880 हेक्टेयर भूमि की सिंचाई होती वहीं वर्तमान में 187769 हेक्टेयर भूमि सिंचित हो पा रही है। प्रशासनिक उपेक्षा के चलते पानी के बिना हजारों हेक्टेयर भूमि बंजर हो रही है।
लघु सिंचाई प्रमंडल के सूत्रों की माने तो उद्वह सिंचाई योजना, आहर-पईन व मध्यम सिंचाई योजना के तहत हजारों हेक्टेयर क्षेत्र में सिंचाई की जाती थी। जो सिंचाई के पारंपरिक साधन रहे हैं। उद्वह सिंचाई योजना के तहत जिले में 79 योजनाएं हैं। जिसमें 74 बंद हैं। शेष पांच में भी पानी की कमी से महज 18 हेक्टेयर भूमि की सिंचाई हो पा रही है। मध्यम सिंचाई योजना के तहत भी सात योजनाएं संचालित हैं। जिसमें दो बंद पड़ी हैं। पांच योजनाओं में पानी नहीं मिलने से एक हेक्टेयर क्षेत्र भी सिंचित नहीं हो पाया है। तिलौथू प्रखंड के हुरका ग्राम पंचायत में छह नलकूपों में तीन बंद हैं। डेहरी नलकूप ट्रांसफार्मर जलने के कारण, लेवड़ा नलकूप बालू देने के कारण व दुधमी डिहरी नलकूप यांत्रिक व विद्युत दोष के कारण बंद है।
आरटीआई कार्यकर्ता कुमार रविरंजन सिंह की माने तो अन्य तीन नलकूपों की स्थिति और भी बदतर है। जिससे सिंचाई कार्य नहीं के बराबर है।
कहते हैं किसान : रोहतास प्रखंड के उचैला ग्राम निवासी किसान कमला कुशवाहा की माने तो उद्वह सिंचाई से ही खेत लहलहाते थे। आज बंद होने से खेतों में हरियाली दूर हो गई है।
नौहट्टा प्रखंड के दारानगर निवासी गजेंद्र प्रताप सिंह कहते हैं कि ताल, पोखर, आहर-पईन समाप्त होने से खेतों में पटवन की समस्या उत्पन्न हो गई है।
कहते हैं अधिकारी :
लघु सिंचाई प्रमंडल के कार्यपालक अभियंता ने कहा कि जल स्त्रोतों के अतिक्रमित होने व जल स्तर तेजी से घटने के कारण मध्यम व उद्वह सिंचाई योजनाएं बंद हो रही है। इसे फिर से दुरुस्त करने के लिए गांव-गांव में जल संरक्षण नीति बनानी चाहिए।
जिला कृषि पदाधिकारी वेकेंटेश नारायण सिंह ने बताया कि तालाबों को अतिक्रमण मुक्त कराने के लिए जिला टास्क फोर्स की बैठक में प्रशासन का ध्यान आकृष्ट कराया गया है।
क्या है उद्वह सिंचाई योजना : वर्षा जल व पहाड़ी क्षेत्रों से आने वाले जल को संग्रहित कर सिंचाई के प्रयोग में लगाया जाता है। इसके लिए बरसाती नदियों में बहने वाले पानी को बांध कर जल संग्रहण किया जाता है।
पांच वर्ष पूर्व सिंचाई हेक्टेयर में
संसाधन हेक्टेयर
तालाब + कुंआ 3879
नहर 2,26,749
विद्युत पंप + ट्यूवबेल 42252
कुल 272880
----------------------
वर्तमान में सिंचाई हेक्टेयर में
संसाधन हेक्टेयर
तालाब + कुंआ 4584
नहर 161000
विद्युत पंप + ट्यूवबेल 21700
लिफ्ट सिंचाई 485
कुल 187769

हम जागें, गांव जागे, बिहार जागे फिर देश..

संझौली/ इंद्रपुरी (रोहतास) : हम जागें, परिवार जागे, गांव जागे, बिहार जागे, फिर देश..। पढ़ेंगे-लिखेंगे नया इतिहास बनायेंगे। संकल्प है! पुन: बिहार को विश्व गुरु बनायेंगे.. जैसे नारों के साथ गुरुवार को दैनिक जागरण के तत्वावधान में बिहार दिवस उत्सव के मौके पर जिले के संझौली व इंद्रपुरी में आयोजित कार्यक्रमों में बड़ी तादात में लोग जुटे। संझौली में निकाली गयी रैली में सैकड़ों छात्र-छात्राओं ने शिरकत किया। जबकि इंद्रपुरी के हुरका में आयोजित विचार गोष्ठी में बिहार के विकास की चर्चा हुई।

इंद्रपुरी के मध्य विद्यालय हुरका में आयोजित बिहार उत्सव में जुटे लोगों को बिहार की महत्ता को रेखांकित किया। संचालक शिक्षक नसीम अख्तर की अगुवाई में हुरका, नीमियाडिह, अंबेदकर टोला के गली-गली में जाकर, गर्व से कहो, हम बिहारी हैं, अपना बिहार, बढ़ता बिहार, पूरे जहां में सबसे प्यारा अपना बिहार सबसे न्यारा जैसे नारों से अलख जगा दिया।
रैली में बबली कुमारी, रोशनी, परमाला, जूही, काजल, छात्राओं को लीड कर रही थी। छात्र वर्ग का नेतृत्व विकास, राकी, रवि कर रहे थे। ग्रामीण भी सारा काम छोड़ रैली में बच्चों के साथ हो लिए। जिसमें योगेंद्र कुमार, मंटू मिश्रा, अक्षय सिंह, बंटी कुमार, राजाराम सिंह, सुजीत कुमार, दामोदर सिंह, अजय सिंह, रामेश्वर सिंह, रंगजी, धनजी सहित कई थे। रैली के बाद विद्यालय में 'बिहार : अतीत वर्तमान तथा भविष्य की संभावनाएं' विषय पर एक परिचर्चा हुई।
मुख्य अतिथि आरएस कालेज तिलौथू के प्राचार्य डा. अशोक कुमार सिंह ने बिहार को और ऊंचाई पर ले जाने के लिए अभिभावकों का आह्वान किया। बीडीओ बीके शर्मा ने दैनिक जागरण की इस पहल को लाजवाब करार दिया। डीपीआरओ रामेश्वर पांडेय ने दैनिक जागरण द्वारा पहले बिहार उत्सव मनाने के लिए बधाई दी। कवि सह शिक्षक केबी शुक्ल 'बेसुध' ने इस अवसर के लिए खास तौर पर तैयार की गयी अपनी कविता 'नूतन बिहार' की प्रस्तुति की। उच्च विद्यालय के प्राचार्य कामेश्वर सिंह, आरएस कालेज के प्रो. डा. महेंद्र सिंह, डा. एपी सिंह ने भी बिहार की गौरवशाली अतीत की चर्चा की। म.वि. हुरका के प्रभारी केके उपाध्याय, मुरलीधर सिंह भी अपने विचार रखे।
हुरका पैक्स अध्यक्ष ब्रजेश सिंह की कार्यक्रम में महत्वपूर्ण सहयोग रहा। डाकपाल विदेश्वर सिंह, भोला सिंह, राणा प्रताप सिंह, कुमार रविरंजन, उमेश सिंह, डोमन सिंह, श्याम सुंदर, सर्वजीत राम सहित कई उपस्थित थे। स्वागत दैनिक जागरण के स्थानीय प्रतिनिधि शशि रंजन ने किया।

ईंट भट्ठों से बढ़ रहा प्रदूषण


कुमार रवि रंजन : हुरका   "प्रभात खबर"

इंद्रपुरी (रोहतास) : निमिया डीह क्षेत्र में करीब 20 ईंट भट्ठा संचालित हैं. इन ईंट भट्ठों से निकल रहे कार्बन से पर्यावरण को खतरा उत्पन्न हो गया है.
वहीं, लोगों के स्वास्थ्य पर इसका प्रतिकूल असर पड़ रहा है. गोड़ैला, नावाडीह, पांडेयपुर, लेवड़ा दुबौली, महेशडीह, कोईडीह, रमडिहरा, हुरका, दुधमी डिहरी व विश्रामपुर के लोगों की मानें तो भट्ठों में जलने वाले कोयले से आसपास के तापमान में भारी वृद्धि हुई है.
रात में सोने के समय भट्ठों से आ रही गरम हवाओं से तापमान काफी बढ़ जाता है. महेशडीह निवासी राम आश्रय रजवार, कोईडीह निवासी नारद रजवार, पूर्व सरपंच मोहन राम व राजा राम सिंह का कहना है कि यह सरकार की कौन सी नीति है कि देखते ही देखते तीन किलोमीटर के दायरे में अनगिनत ईंट भट्ठों को चलाने की स्वीकृति मिल गयी.
हुरका पैक्स अध्यक्ष की मानें तो ईंट भट्ठों से काफी मात्रा में धूल व राख उड़ते हैं, जो किसानों के खेतों में जाते हैं. इसका प्रतिकूल प्रभाव फसल व जमीन की उर्वरा शक्ति पर पड़ रहा है. इस समस्या से निजात पाने लोगों ने सरकार से गुहार लगाने जाने का मूड बनाया है, ताकि फसलों व वातावरण का नुकसान न हो.

"प्रभात खबर"


Monday, April 23, 2012

शेरशाह सूरी का सासाराम हाशिए पर

सासाराम को अधिकांश लोग लोग बाबू जगजीवन राम के चुनाव क्षेत्र की तरह जानते हैं.
इतिहास के पन्ने अब धुंधले हो गए हैं और अब कम ही लोगों को सासाराम शेरशाह सूरी के शहर की तरह याद है.सासाराम शेरशाह सूरी के लिए इतना अपना शहर था कि उसने अपने जीते जी यहाँ अपना मक़बरा बनवाना शुरु कर दिया था.यह मक़बरा निर्माण कार्यों के प्रति उसके अनुराग का भी उदाहरण है. ठीक उसी तरह जिस तरह से ग्रैंड ट्रंक रोड है. ग्रैंड ट्रंक रोड यानी जीटी रोड शेरशाह सूरी के छह साल के शासन काल का ऐसा योगदान है जिसे इतिहास के पन्नों से कभी मिटाया नहीं जा सकता.इतिहासकार कहते हैं कि सड़क तो पहले भी थी लेकिन शेरशाह सूरी ने उसका पुनर्निर्माण करवाया और इसे यात्रा और व्यापार के योग्य बना दिया.
शेरशाह सूरी और ग्रैंड ट्रंक रोड पर अध्ययन करने वाले डॉ श्यामसुंदर तिवारी कहते हैं कि शेरशाह सूरी ने ग्रैंड ट्रंक रोड पर सत्रह सौ सरायों का निर्माण करवाया.वे कहते हैं, “कर्मचारियों से युक्त इन सरायों की वजह से व्यापारियों को लूटने आदि की घटना कम होने लगी जिससे व्यापार बहुत बढ़ा.”दरकिनार सासाराम
नई सड़क तो ठीक है लेकिन पुरानी ग्रैंड ट्रंक रोड की ओर किसी का ध्यान नहीं है, अब तो वहाँ चलने तक की जगह नहीं है
मोहम्मद इम्तियाज़ अहमद
लेकिन अब स्वर्णिम चतुर्भुज के राष्ट्रीय राजमार्ग क्रमांक दो ने शेरशाह सूरी के सासाराम को मानो किनारे कर दिया है.
कुछ बरस पहले तक सासाराम कोलकाता से बनारस तक की यात्रा के लिए एक अच्छा ख़ासा पड़ाव था. अब वाहन वहाँ पहुँचते ही नहीं.
लेकिन इस परिवर्तन से व्यापारी ख़ुश हैं. सब्ज़ी का व्यवसाय करने वाले मोहम्मद सलीम कहते हैं, “नई सड़क से सभी को फ़ायदा है. लोगों का समय बच रहा है और वे जाम में नहीं फँस रहे हैं.”
हालांकि मोहम्मद सलीम की हाँ में हाँ मिला रहे उनके भतीजे मोहम्मद इम्तियाज़ अहमद इस बात से नाराज़ भी हैं कि शहर के भीतर की वो सड़क जो ग्रैंड ट्रंक रोड थी उसका किसी को ख़याल नहीं.
वे कहते हैं, “नई सड़क तो ठीक है लेकिन पुरानी ग्रैंड ट्रंक रोड की ओर किसी का ध्यान नहीं है, अब तो वहाँ चलने तक की जगह नहीं है.”
वैसे नाख़ुश तो सासाराम से निकलकर राष्ट्रीय राजमार्ग से मिलने वाले मोड़ पर चाय-बिस्किट की दुकान चलाने वाला भी नहीं है. वह बताता रहा कि कैसे इस नई सड़क ने उसके व्यवसाय को आधा कर दिया है. लेकिन वह माइक देखकर चुप हो जाता है.
उसका कहना है कि उसकी तरह बहुत से व्यावसायी दुखी हैं.

उम्मीद

धीरे-धीरे सारे प्रतिष्ठान वहाँ चले जाएँगे फिर धीरे-धीरे वह सड़क भी ग्रैंड ट्रंक की तरह प्रतिष्ठित हो जाएगी
डॉ श्याम सुंदर तिवारी
सासाराम के लिए अब ग्रैंड ट्रंक रोड की जगह अब ग्रैंड ट्रंक रोड बाइपास है. लेकिन डॉ श्याम सुंदर तिवारी मानते हैं कि यह कोई बड़ा परिवर्तन नहीं है और धीरे-धीरे सब बाइपास के नज़दीक चला जाएगा.
वे कहते हैं, “धीरे-धीरे शहर के होटल और दूसरे जो व्यावसायिक प्रतिष्ठान हैं वो बाइपास सड़क की ओर जा रहे हैं.”
वे मानते हैं कि ग्रैंड ट्रंक का मार्ग पहले भी बदलता रहा है. उनका कहना है कि धीरे-धीरे नई सड़क भी पुरानी ग्रैंड ट्रंक रोड की तरह हो जाएगी.
वे कहते हैं, “धीरे-धीरे सारे प्रतिष्ठान वहाँ चले जाएँगे फिर धीरे-धीरे वह सड़क भी ग्रैंड ट्रंक की तरह प्रतिष्ठित हो जाएगी.”
हालांकि ग्रैंड ट्रंक रोड या शेरशाह सूरी की प्रतिष्ठा इस बात से कम नहीं होगी कि नई सड़क कहाँ से गुज़रती है.
लेकिन सासाराम को ग्रैंड ट्रंक रोड से स्वर्णिम चतुर्भुज या गोल्डन क्वाड्रिलेट्रल तक आने के लिए लंबा समय लगेगा. 
साभार: BBC

संचालको का हलचल तस्वीरों में

कृष्ण कुमार (VLe) द्वारा की गई आत्महत्या

प्रेस विज्ञप्ति

अध्यक्ष

 इन्द्रजीत कुमार सुधाकर

Sunday, April 22, 2012

मिडिया क्यूँ कर रहा नजरंदाज वसुधा केंद्र को

सुशासन की चकाचौंध ने शायद मिडिया को अपने चमकते हुए फ्लस से फुर्सत ही नहीं दे रहा की इनकी कैमरा का फ्लस कभी वसुधा केंद्र के समस्याओं पे चमके ! आखिर दिन भर सुशासन की जो इन्हें खबर लिखनी या चलानी पड़ती है !और आज के दुनिया में गरीब एवं लाचार लोगों की मीडिया कैसे संज्ञान ले सकती है, जिससे इनके लाभ पे विपरीत असर पड़ जाये ! ये हकीकत है की अख़बारों की अच्छी खासी आमदनी राज्य सरकार के विज्ञापनों से प्राप्त होती है और, ये भी एक हकीकत का हिस्सा है की वसुधा केंद्र की दशा गर्त जैसी करने में वर्तमान राज्य सरकार की एक बड़ी भूमिका रही है ! सरकारी विज्ञापन बेशक मीडिया को सरकार के प्रति चाटुकार बनाने पे विवश करता है ! अगर मीडिया थोड़ी हिम्मत कर के वसुधा केंद्र के समस्यायों को उजागर करता भी है, तो निश्चिततौर पर सरकारी हाथ इनका पीछा करना चालू कर देगा! ये बात खास कर तब जोर से चर्चा में रहा जब प्रेस परिषद् के अध्यक्ष श्री मार्कंडेय काटजू ने तल्ख़ तेवर में सीधे तौर पे सुशासन की सरकार पे  यह कहते हुए हमला बोला था की " बिहार में मीडिया स्वतंत्र नहीं है"! इनके इस बात से मानो जैसे सरकार के होश उड़ गए ! सरकार ने कहा की श्री काटजू  झूठ बोल रहे हैं ! फिर श्री काटजू ने फैक्ट फिन्डिंग  कमिटी बना डाला जाँच हेतु ! फिर क्या - देखते ही देखते करीब 200 पत्रकारों ने अपनी लिखित और मौखिक शिकायत कर सरकार और मीडिया की पसीना छुड़ा दिया ! इन पत्रकारों ने अपने ज्यादातर शिकायतों में कहा और लिखा है की "मीडिया द्वारा उन्हें इसलिए कोपभाजन का शिकार बनाया गया - क्यूँ की वो सरकार के कथनी और करनी के फासले को अपनी लेखनी से उजागर कर रहे थे! जो मीडिया को वर्दास्त नहीं था"!
ये बातें हमें पूरी तरह आश्वस्त करती है की सरकारी दबाव ही वो मूल कारन है जो, मीडिया को विवश करता है सरकार के विरुद्ध न जाने के लिए ! और ये बात सबको मालूम है की वर्तमान सरकार द्वारा ही इस योजना को चालू कर बैक -फुट पे रखा गया ! और देखते ही देखते 6000 संचालकों के परिवार की जीविका दैनिये दशा में जा पहुंची ! क्या 6000 परिवारों की आजीविका की समस्या मीडिया के लिए समाचार नहीं है ? क्या वसुधा केंद्र के  संचालक  सरकारी  वादों  पे  भरोसा  कर के  धोखा  नहीं खाए हैं ? क्या  मीडिया  नहीं जानता की  इसका जिम्मेवार अपने सुशासन बाबु हैं ? क्यूँ की इन्ही के गोल- मटोल वादों पे ऐतबार कर के वसुधा केंद्र संचालकों ने अपना बेसकिमती समय और पूंजी लगाया , जिसका न तो कोई वर्तमान है और ना ही भविष्य ! मीडिया के इस रवैये से हम सब संचालकों को यही लगता है की शायद हम सब किसी और देश या राज्य के शरणार्थी हैं और वसुधा केंद्र ले रखे हैं, जिसे शायद सरकार और मीडिया हजम नहीं कर पा रही !  
Kumar Ravi Ranjan, Rohtas, Bihar
9934060241

Saturday, April 21, 2012

कामन सर्विस सेंटर और हिंदी फिलम "शोले"


[  बिहार में वसुधा केंद्र की स्थिति पर एक व्यंग ]
शोले पिक्चर के सारांश पे नजर डालेंगे तो पाते हैं की , अपने बिहार के सुशासन के राज में वसुधा केंद्र और इसके संचालक की स्थिति ठीक शोले फिल्म के बीरू और जय की तरह है ! गब्बर और ठाकुर की पुरानी तथा पारम्परिक अदावत में बीरू और जय को ठाकुर द्वारा ढाल की तरह यूज किया जाता है ! और बिहार में कामन सर्विस सेंटर एवं संचालक ( VLe ) की स्थिति ठीक उसी बीरू और जय की तरह बोलें तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी ! क्यूँ की ठाकुर के रूप में मुख्य मंत्री श्री नितीश कुमार और डकैत  के रूप में गब्बर सिंह SCA (श्रेई सहज) के आपसी अदावत के बजाय, अपने सांठ-गांठ और फायदा के लिए वसुधा केंद्र को बीरू और संचालक VLe को  जय के रूप में बिहार का ठाकुर श्री नितीश कुमार द्वारा यूज किया जा रहा है ! "शोले" फिलम में ठाकुर के गब्बर से व्यक्तिगत दुश्मनी को लेकर बीरू और जय क्या नही करते , यंहा तक की जय और बीरू कई बार अपनी जान जोखिम में डालकर ठाकुर के अदावत के लिए बड़े से बड़े चुनौतियों का सामना करते  हैं !

तो क्या बिहार में कामन सर्विस सेंटर (बीरू) और संचालक (जय) छ: वर्षों से अपनी जान, माल, पूंजी, आमदनी और परिवार के जीवन स्तर को जोखिम में डाल कर, बिहार के ठाकुर और SCA (लुटेरा गब्बर ) को फायदा नहीं - पंहुचा रहे ? भाईओं ,मित्रों , मेरी बहनों आपने शोले फिलम की समापन के दृश्यों को आपने देखा होगा की ठाकुर और गब्बर के रंजिश के वास्ते किस प्रकार से "दो जिस्म और एक रूह", जैसे हर पल साथ - साथ रहने वाले दो जिगरी दोस्त (जय- बीरू) सदा के लिए एक दुसरे से बिछुड़ जातें हैं ! ठाकुर को दिए वादे को पूरा कर जय (अमिताभ बच्चन ) दम तोड़ देता है !

बिहार में भी  ठाकुर द्वारा कामन सर्विस सेंटर के प्रति बरती जा रही हीलाहवाली, उपेक्षा और लापरवाही से- क्या प्रतीत नहीं होता की, ठीक शोले के बीरू की तरह बिहार में वसुधा केंद्र जीवित रह जाय और "जय" (अमिताभ बच्चन ) की भांति "कामन सर्विस सेंटर" (CSC )  के संचालक VLe को बलिदान करना पड़े ? चुकी हाल ही में बिहार के मुजफ्फरपुर में एक VLe द्वारा आत्म हत्या की पहल शरू हो चुकी है !

बिहार के ठाकुर का अगर हम रिकॉर्ड देखतें हैं तो हम पाएंगे  की इन्होने बिहार में अपनी विकास की कृपा ढेरों बरसाई है जैसे -मैट्रिक पास वालों को भी कई प्रकार के  रोजगार उपलब्ध कराना, शिक्षकों के , दलितों, महिलाओं, सडकों, बिजली, चिकित्शालयों, विद्यालयों एवं अन्य चीजों  पे सराहनीये कृपा बरसाया गया! लेकिन वसुधा केंद्र के ऊपर कृपा तो दूर बिहार के ठाकुर द्वारा इस बिहार के बीरू (कामन सर्विस सेंटर ) की अवहेलना भी शुरू कर दी गयी !

बिहार के ठाकुर ने बड़े - बड़े  वादे किये थे  ! लगता है बिहार का ठाकुर अपने वादे को बिसार -ताक पे रख दिया है ! जय (VLe ) और बीरू (CSC ) किस हाल में गब्बर ((CSC )   के खिलाफ मोर्च ले रखे हैं, शायद ठाकुर को सुध ही नहीं! शोले के बीरू -जय , ठाकुर द्वारा प्रदत रसद पानी तथा गोली बंदूक के सहारे गब्बर के खिलाफ संघर्ष करते हैं ! लेकिन बिहार के  ये जय -बीरू अपनी रसद - पानी लगा बिहार के गब्बर के खिलाफ न हो उसके अधीन काम करने पर विवश हैं ! अगर इस गब्बर से बिहार के जय - बीरू कुछ मांगने का हिम्मत भी करते हैं तो बस, ये गब्बर धमकी देना शुरू कर देता है! और उधर बसंती के रूप में BELTRON भी अपने नखरे से बाज नहीं आता ! जिसके पीछे बीरू (वसुधा) अपनी सुध बुध खो कर उसके प्यार को पाने हेतु प्रयास करते रहता है !  और बिहार (रामगढ) में भी वसुधा केंद्र बीरू की भांति सरकारी काम पाने हेतु BELTRON  (बसंती) के पास अपने प्रयास को जरी रखा है ! शोले में बीरू को  बसंती का प्यार तो मिल जाता है! लेकिन अभी तक बिहार के शोले में बसंती (BELTRON ) द्वारा  बीरू (वसुधा) को सिर्फ इंकार किया जा रहा है! पता नहीं ये क्लाइमेक्स का तड़का कब चलेगा ? बिहार के बीरू को बसंती (BELTRON ) के पास कुछ ज्यादा ही मसक्कत करनी पड़ रही है शोले के बीरू के अपेक्षा प्यार (G2C सेवा) को पाने के लिए !

बिहार का गब्बर ( स्रेई सहज) शोले  के गब्बर से ज्यादा खूंखार और ताकतवर है ! ये घट- घट में  रमण और विचरण एक सिंह की भांति करता है !यंहा कुछ "शोले" से विपरीत स्टोरी चल रही  है, तभी तो बिहार का ठाकुर गलत फहमी से अपने बीरू (CSC ) और जय (VLe ) जैसे जांबाज स्वामी भक्तों को उपेक्षित कर दुश्मन गब्बर .............. सिंह (SCA) के हाथों में खेल रहा है! अगर इस फिलम में सूटिंग और क्लाइमेक्स का शिलशिला यूँ ही चलता रहा तो निश्चित तौर पे बन रहा  ये बिहार का "शोले" (NeGP ) फिलम एक दिन आवश्य बाक्स आफिस पे बुरी तरह फ्लाप होगा ! जिसमे डिस्ट्रीब्यूटर बोले तो (VLe ) को वसुधा केंद्र हेतु लगाये गए अपने पूंजी के साथ भारी नुकसान उठाना पड़ सकता है ! जिसका जिम्मेवार सिर्फ और सिर्फ बिहार का ठाकुर होगा ! जरुरत है स्टोरी में अपने वादे के अनुकूल बदलाव लाने  का ! शायद बिहार के ठाकुर भूल बैठा है की शोले के मूल स्टोरी में बीरू - जय ,ठाकुर के साथ थे, जिससे फिलम को सुपर हिट होने का मौका मिला ? क्या अब जरुरत इस बात की नहीं, की बिहार में भी इस NeGP (शोले) फिलम को सुपर हिट  करने के लिए ठाकुर, बीरू और जय को एक साथ मिल कर बिहार के इस लुटेरे गब्बर, जो रमण करता है सिंह की तरह- से हिसाब लिया जाये ? 

ये किसी और की नहीं मेरी खुद की अभिव्यक्ति है! और मैं भारत के संविधान के अनुच्छेद १९ के तहत अपनी अभिव्यक्ति सभ्य तरीके व्यक्त करने हेतु स्वतंत्र हूँ !
कुमार रवि रंजन, NeGP , CSC, तिलौथु, रोहतास 

सहज का सफ़ेद झूठ

The changing Face of Bihar

The challenge of development in Bihar is enormous due to persistent poverty, complex social stratification, unsatisfactory infrastructure, and in many situations, weak governance. These problems are well known but not well understood. The people of Bihar - civil society, businessmen, government officials, farmers, and politicians - also struggle against an image problem that is deeply damaging to Bihar's growth prospects. An effort is needed to change this perception, and to search for real solutions and strategies to meet Bihar's development challenge.
Bihar Face
The main message of this report from our VLE Dinesh Pandey from Rohtas district is one of hope. There are many success stories not well known outside Bihar that demonstrate its strong potential, and could in fact provide lessons for other regions. A boost to economic growth, improved social indicators, and poverty reduction will require a multi-dimensional development strategy that builds on Bihar's successes and draws on the underlying resilience and strengths of its people. Precisely, that is what SAHAJ Vasudha Kendra is doing in Bihar. As Dinesh says, people in terrorism affected Rohtas district are now returning back to normalcy with the help of SAHAJ. SAHAJ is bringing in e-Governance at their doorsteps, sensitizing their women about RCH, educating the villagers in computer education, which in turn is making the young age band techno-savvy and equipped with technical expertise so that they could face the challenges in the real world. In terror struck Tiothu, Rohatas, and Chenari the Sahaj CSCs are operating in collaboration with the local Panchayat to make health, education, and railway reservation related services available in their locality and thereby infiltrating their life with comfort and happiness. Dinesh informs in Rohtas 6,92,562 men are jobless, and the number almost doubles when it comes to women (10, 09, 740). Many young entrepreneurs like Dinesh through their SAHAJ Vasudha Kendra are aspiring to change the fate of their fellow people suffering from feeble agricultural growth and abysmal poverty. All they want to show is Bihar is changing and can be changed.
Dinesh Pandey, VLE
District Rohtas, Panchayat- Akouti, Akouti Gola

नितीश जी वसुधा मामलों में आपके "लेकिन" शब्द का क्या मतलब ?

ई-गवर्नेस पर बुनियादी ढ़ाचा विकसित नहीं- नीतीश


MP POST:-17-02-2011
पटना।सूचना तकनीक के भरपूर इस्तेमाल के लिए बिहार में पूर्ण रूप से विकसित बुनियादी ढ़ंाचा का अभाव बताते हुए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने गुरूवार को कहा कि सरकार द्वारा इसका लगातार विकास किया जा रहा है।
मुख्यमंत्री ने ई-गवर्नेस पर नेतृत्व सम्मेलन विषयक कार्यशाला में कहा, कि बिहार सूचना तकनीक के विकास का पूरी तरह फायदा नहीं उठा पाया है और राज्य में इसके लिए बुनियादी ढ़ाचे के विकास की प्रक्रिया चल रही है, जिसके लिए संसाधनों का बड़े स्तर पर कंप्यूटीकरण करना होगा। उन्होंने कहा कि राज्य के 8463 ग्राम पंचायतों में कामन सर्विस सेंटर स्थापित करने का काम चल रहा है, लेकिन अधिक से अधिक सुविधाएं लोगों तक पहुंचाने के लिए पंचायत भवन में ही इसे शुरू करने के लिए पूरी कोशिश करेंगे।
नीतिश ने कहा कि ई-गवर्नेस के लिए केंद्र द्वारा बहुत पैसा दिया जाता है, लेकिन केवल कंप्यूटरीकरण पर जोर देने सच् अच्छा शासन नहीं आएगा। इसे सफल बनाने के लिए अधिक से अधिक जोर सुशासन पर देना होगा। इसका इस प्रकार विकास करना होगा कि उपयोगिता बढ़े।
उन्होंने कहा कि बिहार में अभी लोग ई सेवा केंद्रों श्वसुधाश् पर आवेदन करते हैं लेकिन उन्हें लाभ नहीं मिल पाता क्योंकि अभी कई कड़िया गायब है। कानूनी और व्यवहार संबंधी कठिनाइयों का निराकरण करना होगा।
मनरेगा में भ्रष्टाचार को रोकने के लिए लाभांवितों को केंद्र सरकार द्वारा कार्ड देने और एक विशेष नंबर देने के लिए ई शक्ति योजना की तारीफ करते हुए नीतिश कुमार ने कहा कि उन्हें आशा है कि इसे अन्य क्षेत्रों में भी उपयोग में लाया जा सकेगा।
मुख्यमंत्री ने कहा कि विकास के लिए हम तकनीक का उपयोग करने के लिए पूरी तरह तैयार हैं, क्योंकि ई-गवर्नेस से शासन में पारदर्शिता आती है।
उन्होंने कहा कि बिहार सरकार का सुशासन पर अधिक जोर है। इसलिए लोकसेवाएं लोगों को सुगमता से उपलब्ध कराने के लिए सेवा का अधिकार कानून लाने जा रहे हैं, जो अधिकारियों की जवाबदेही तय करेगा।

Thursday, April 19, 2012

इसे कहते हैं कच्छप गति का विकास

CSC Problem in India

जागो VLe जागो

CSC Problem in India

आखिर वसुधा केंद्र के साथ हीलाहवाली क्यूँ ?

20Aprl 2012 Report By: 
Kumar Ravi Ranjan, Vasudha Kendra
ग्रामीण क्षेत्रों में शहरी सेवाओं को उपलब्ध करने हेतु बिहार में ई-गोवारनेंस लागु कर पंचायतों में कामन सर्विस सेंटर की वसुधा केंद्र के रूप में स्थापना बिहार सरकार द्वारा की गयी है!  वादे तो (एस सी ए) बहुत किये गए, मानो जैसे सभी VLe  तुरंत अमेरिका के वारेन बफेट या फिर बिल गट्स जैसे कोई आमिर आदमी बनने वाले हों ! दरअसल ये वादे अगर अपने दम पे कोई कम्पनी करती तो शायद ही किसी आईटी शिक्षित बेरोजगार  नौजवानों को को इन बातों में विश्वास होता? लेकिन वसुधा केंद्र से सम्बंधित प्राप्त आय की चर्चा बढ़ा चढ़ा कर राज्य सरकार द्वारा कम्पनियों को मोहरा बना कर किया गया ! अच्छे खासे तादाद में बेरोजगारों ने इसमें अपनी रूचि तथा पूंजी लगा कर वसुधा केंद्र खोलने में दिखाई! पुरे पांच वर्ष बीत चुके लेकिन वसुधा केन्द्रों को किये गए वादों में से एक भी सरकारी सेवा मुयस्सर नहीं हुआ! अब इसे हम नियति की विडंबना या सरकार की तानाशाही निति की घोतक लालफितासह्बी की प्रक्रिया कहें !  जो अब तक वसुधा केन्द्रों को डेड स्थिति में रखा गया है ! आज हमारे राज्य में वसुधा के संचालको की स्थिति ऐसी है की , रोज सुबह अख़बार के एक - एक पन्ने को को बेसब्री से पढ़ते हैं की शायद वसुधा को जीवंत करने से सम्बंधित  कोई समाचार छपी हो ! लेकिन मिलता कुछ नहीं ! जिस प्रकार से नितीश कुमार जी ने संचालकों को धोखा  देने का काम किया वो शायद कोई फ्राड कम्पनी भी नहीं कर सकती थी ! मैं किसी और की नहीं बल्कि अपनी बात कर रहा हूँ की मै वो सख्स हूँ जो अपने कान से मुख्य मंत्री का भाषण सुन कर वसुधा केंद्र लिया है ! शायद हमारे सदर अब अपने वसुधा से सम्बन्धित किये गए वादों को भूल गए हैं ! या फिर किसी सलाहकार ने सलाह दिया हो की इस केंद्र से बिहार को कुछ नहीं हासिल होने वाला है ! वसुधा के विकास में एक बात तो तय है की सरकारी मुलाजिम बिलकुल नहीं चाहते की बिहार में वसुधा पनपे !इन्हें एक बात का डर है की अगर वसुधा केंद्र अपने स्वस्थ स्थिति में आ गया तो, इनकी हमेशा गर्म रहने वाली जेबें ठंडी पड़ जाएगी ! उपरी आमदनी की जरिया बिलकुल बंद हो जायेगा ! चुकी सरकार ने उन तमाम सेवाओं को वसुधा केन्द्रों के जिम्मे सुपुर्द करने का वादा किया है  जो किसी न किसी रूप से आजादी के बाद  से ही सरकारी बाबुओं द्वारा पीड़ित और संक्रमित रहा है ! और अकाट्य सत्य ये भी है की वसुधा केन्द्रों को सक्रिय करने में लालफीताशाही का बड़ा रोल है ! मैं मुख्य मंत्री के ढेरों जनता दरबार में अपनी अर्जी लेकर गया हूँ ! वसुधा से सम्बन्धित आवेदनों के प्रति मैंने कभी भी मुख्य मंत्री को गंभीर होते नहीं देखा ! जब की वसुधा केंद्र बिहार के वसुधा के लोगों के लिए लोकतान्त्रिक प्रक्रिया में संजीवनी साबित हो सकता है ! इस केंद्र से उन गरीब तबके के लोगो को स्वत: उन सेवाओं का ऑनलाइन लाभ मिलना तय हो जायेगा, जिसके लिए वो अपना सारा काम धंधा छोड़ परेशान रहा करते थे ! अब जरुरत इस बात की है की वसुधा केंद्र के बारे में सुशासन की सरकार तुरंत ध्यान दे ! अन्यथा बिहार को विकसित राज्य बनाने का सपना चकनाचूर हो जायेगा ! 

Tuesday, April 17, 2012

सूचना के अधिकार के तहत कुछ सैम्पल आवेदन

  1. किसी सरकारी विभाग में रुके हुए कार्य के विषय में सूचना के लिए आवेदन
  2. गलियों तथा सड़कों से जुड़े कार्यों का पूर्ण विवरण
  3. सड़क की मरम्मत का विवरण
  4. सड़क की खुदाई का विवरण
  5. सफाई की समस्या - स्वीपर अपना काम सही तरीके से नहीं करते
  6. कूडेदान की सफाई नहीं होना
  7. स्ट्रीट लाइट काम नहीं कर रही है
  8. पानी की समस्या
  9. बागवानी (पार्क) की समस्या
  10. स्कूल में अध्यापक या अस्पताल में डॉक्टर का न आना या देर से आना
  11. अस्पताल में दवाइयों की कमी
  12. मध्याहन भोजन योजना का विवरण
  13. यूनिफॉर्म/किताबों के वितरण का विवरण
  14. विद्यालय की मरम्मत व अन्य खर्चे का विवरण
  15. विद्यालय में वजीफा का विवरण
  16. राशन का विवरण
  17. बी.पी.एल के चयन के लिए किये गये सर्वे का विवरण
  18. वृद्वावस्था एंव विधवा पेंशन के आवेदन पर हुई कार्यवाही का विवरण
  19. वृद्वावस्था/विधवा पेंशन का विवरण
  20. व्यवसायीकरण
  21. अतिक्रमण
  22. किसी वार्ड में हुए कामों की सूचना
  23. विधायक/ सांसद विकास निधि का विवरण
  24. जन शिकायत निवारण व्यवस्था
  25. भ्रष्टाचार से सम्बंधित शिकायतों की स्थिति
  26. सरकारी वाहनों का दुरूपयोग
  27. कार्यों का निरीक्षण
विशेषत: ग्रामीण समस्याओं से सम्बंधित आवेदन
  1. हैण्डपम्पों का विवरण
  2. विद्युतिकरण का विवरण
  3. ग्राम पंचायत की भूमि एवं पट्टे का विवरण
  4. ग्राम पंचायत के खर्चे का विवरण
  5. ए.एन.एम से सम्बंधित विवरण
  6. एन.आर.ई.जी.ए. के तहत जॉब कार्ड, रोजगार व बेरोजगारी भत्ता का विवरण
  7. रोजगार गारंटी के तहत मांगे गये काम का विवरण
  8. रोजगार गारंटी के तहत जॉब कार्ड के आवेदन का विवरण
  9. इन्दिरा आवास योजना का विवरण

इस खबर के स्रोत का लिंक: 
http://hindi.indiawaterportal.org/node/33639