Saturday, August 18, 2012

संतोष मैथ्यू एक लाजवाब आइएस आफिसर


अरे सुनो रे वसुधा केंद्र के संचालकों, पटना से एक खुशखबरी आई है की अब हमलोगों को इंदिरा आवास से सम्बंधित देख - रेख तथा फोटोग्राफी का कार्य मिलने वाला है ! जानते हो आप -ये किसके विशेष कृपा या पहल से यह कार्य मिला है ? ग्रामीण विकास मंत्रालय के सचिव श्री संतोष मैथ्यू जी के दिमाग की उपज है यह कार्य ! काम तो पहले भी बहुत मिला था लेकिन, ये बिहार के व्योरोक्राट्स  हमेशा रस्ते में रोड़ा अटकाने  का काम किया ! इस कार्य के पहले भी न जाने कितने दफे सुनने तथा देखने को मिला की फलां काम वसुधा केंद्र के माध्यम से किया जायेगा ! नतीजा सिफर रहा ! कारन की वसुधा केंद्र को सभी बेईमान व्योरोक्राट्स सवत के जैसा इर्ष्या करके किसी भी काम को नहीं होने दिया ! कारन की इनकी बाबूगिरी को खतरा महशुस होता था ! लेकिन वन का गीदड़ जायेगा किधर - एक ना एक दिन तेको आनी ही पड़ेगी गिरफ्त में ! संतोष मैथ्यू जी ने वो कर दिखाया जो पहले कभी नहीं हुआ था ! इस कदर सर्कुलर / पत्र तथा विज्ञापन जारी  किया है की प्रखंड से लेकर डिएम कार्यालय की पसीने छुट रहे हैं 'की' कैसे हर बार की भांति इस बार भी वसुधा केन्द्रों को इस काम से वंचित किया जाये? लेकिन यंहा तो सभी पिशाची बुद्धि फेल होते नज़र मालूम पड़ती है ! इंदिरा आवास में करोड़ों रुपये की गड़बड़झाला हुई है ! जैसे एक ही नाम के व्यक्ति को दो इंदिरा आवास, किसी ने लिंटर लेबेल तक घर बनाया नहीं लेकिन मुखिया, सचिव, बीडीओ तथा दलालों से पैक्ट करके राशी की निकासी कर बंदरबांट कर लिया ! या फिर जिसको  आवश्यकता नहीं फिर भी उसको आवास पास कर दिया !  ऐसे बेईमानो का नब्ज पकड़ने का काम श्री संतोष मैथ्यू जी ने किया है ! 
अब वसुधा केंद्र के संचालक अपने कैमरा को लेकर जायेंगे और सम्बंधित अभ्यर्थी के घर का फोटो खिचेंगे तत्पश्चात उस घर से सम्बंधित एक रिपोर्ट बनायेंगे और फिर उसको अपने केंद्र का मुहर लगा कर अपना हस्ताक्षर कर अपने प्रखंड विकास पदाधिकारी को सौप देंगे ! इसके बाद ग्रामीण विकास मंत्रालय वास्तविकता को ध्यान में रखकर अग्रिम राशी सम्बंधित अभ्यावार्थियो को निर्गत करेगा ! ये हुई न बात ! इसके पहले सिर्फ पत्र जारी होता था की फलाना काम वसुधा केंद्र करेगा ! लेकिन वसुधा केन्द्रों का मुहर हस्ताक्षर की जिक्र तक उस पत्र में नहीं होती थी ! बाबु अपने किसी दुलरुआ से उसी काम को करा कर रिपोर्ट दे देते थे की वसुधा केन्द्रों से ही इस काम को कराया गया है ! लेकिन वसुधा के लाख प्रयास के बाद भी काम मुयस्सर नहीं हो पाता था !
अब बाबु लोग कितना मुहर और फर्जी हस्ताक्षर वसुधा केंद्र का जुगाड़ करेंगे ! अगर करेंगे भी तो लाल घर जायेंगे अपनी इज्ज़त को चार चाँद लगाने ! लेकिन वसुधा केंद्र के संचालकों के उपर ये एक बड़ी जिम्मेवारी सौपी गयी है ! ध्यान इस बात का रखना होगा की वसुधा केन्द्द्- कोई भी दलाल , मुखिया, सचिव या बीडीओ के बहकावे में न आये! ये लोग हर संभव कोशिश यही करेंगे की येन केन- प्रकारेण वसुधा केन्द्रों से गलत कराया जाये तथा वसुधा को बदनाम कर इस महत्वपूर्ण कार्य को फिर से अपने गिरफ्त में लिया जाये ! इस लिए संचालकों मै आपको हिदायत दे रहा हूँ की जो सत्य है वही रिपोर्ट बना कर दो ! वर्ना सरकार की भरोसा हम लोगों पैर से उठ जाएगी ! और जब एक बार भरोसा उठता है तो उसे पुनः बहल करने में काफी वक्त लग जाता है ! काम करो नाम करो ! अब आने वाला वक्त हमारा होगा ! बहुत तडपाया हमलोगों को सुशासन के बाबुओं ने ! आने वाले दिनों में अब हमलोग बिहार का नया तक़दीर लिखने वाले हैं ! जो सुशासन से लाख गुना बेहतर होगा ! जय हो .......    :-)

दुखन भाई कहिन,

अपुन का फंडा
दुखन भाई कहिन,
की पानी को नहीं  काटा  जा सकता, और एक चना घड़ा नहीं फोड़ सकता !
अरे भाई दुखन ........ यही बुझा तो पियाज ......
पानी को भी काटा जा सकता है और एक चने से घड़े को भी फोड़ा जा सकता है !
वो कैसे ... दुखन भाई ने कहिन ?
अरे भाई पानी को बर्फ बना दो और जितने हिस्से में चाहो काट लो ....
और सुन रे दुखन एक चने को घड़े में नहीं , उसे लेजाकर खेत में लगा दो ढेरों चने हो जावेंगे फिर उसे घड़े में ड़ाल दो
फिर देखते हैं की घड़ा कैसे नहीं फूटता है .......
है न ठलुआ दिमाग ...... तो फिर बोलता क्यूँ नहीं की ....
.......जय हो .........

गांवों में समन्वय के लिए 900 करोड़ रुपया ग्रामीण विकास मंत्रालय देगी !

19-08-2012

अरे भाई जयराम रमेश जी , ये पैसे वैसे ही लगते है गाँवो के लिए जैसे शहरी क्षेत्र ग्रामिणों को होटल में खाने के बाद बैरों की तरह ट्रिप दे रहा हो ! लुटा दो देश का सारा धन दौलत अर्बन क्षेत्रों में ! ग्रामीण क्षेत्र बैरा जो ठहरा शहर वालों का ! या फिर शहर वाले कर्ज दे रखे होंगे गाँव वालों को !
दिमाग ठिकाने आ जायेगा जब ग्रामीण लोग शहरों को राशन - पानी, दूध- दही, इंट - पत्थर, मजदुर भेजना बंद कर देंगे !
इसमें कोई संदेह नहीं ' सरकार आज भी ग्रामिणों को जेनेरल डब्बा समझती है '

..........जय हो........ ऐसी सरकार की

Wednesday, August 15, 2012

रविन्द्र नाथ टैगोर अंग्रेजों का चमचा

क्या किसी ने जन गण मन गाते सोचा की आखिर ये कौन ‘अधिनायक’ और ‘भारत भाग्य विधाता’ हैं जिनके जयघोष से हम अपने राष्ट्रगान की शुरुआत करते हैं?  

सन 1911 तक भारत की राजधानी बंगाल हुआ करता था। सन 1905 में जब बंगाल विभाजन को लेकर अंग्रेजो के खिलाफ बंग-भंग आन्दोलन के विरोध में बंगाल के लोग उठ खड़े हुए तो अंग्रेजो ने अपने आपको बचाने के लिए के कलकत्ता से हटाकर राजधानी को दिल्ली ले गए और 1911 में दिल्ली को राजधानी घोषित कर दिया। पूरे भारत में उस समय लोग विद्रोह से भरे हुए थे तो अंग्रेजो ने अपने इंग्लॅण्ड के राजा को भारत आमंत्रित किया ताकि लोग शांत हो जाये। इंग्लैंड का राजा जोर्ज पंचम 1911 में भारत में आया। रविंद्रनाथ टैगोर पर दबाव बनाया गया कि तुम्हे एक गीत जोर्ज पंचम के स्वागत में लिखना ही होगा।

उस समय टैगोर का परिवार अंग्रेजों के काफी नजदीक हुआ करता था, उनके परिवार के बहुत से लोग ईस्ट इंडिया कंपनी के लिए काम किया करते थे, उनके बड़े भाई अवनींद्र नाथ टैगोर बहुत दिनों तक ईस्ट इंडिया कंपनी के कलकत्ता डिविजन के निदेशक (Director) रहे। उनके परिवार का बहुत पैसा ईस्ट इंडिया कंपनी में लगा हुआ था। और खुद रविन्द्र नाथ टैगोर की बहुत सहानुभूति थी अंग्रेजों के लिए। रविंद्रनाथ टैगोर ने मन से या बेमन से जो गीत लिखा उसके बोल है "जन गण मन अधिनायक जय हे भारत भाग्य विधाता"। इस गीत के सारे के सारे शब्दों में अंग्रेजी राजा जोर्ज पंचम का गुणगान है, जिसका अर्थ समझने पर पता लगेगा कि ये तो हकीक़त में ही अंग्रेजो की खुशामद में लिखा गया था।

इस राष्ट्रगान का अर्थ कुछ इस तरह से होता है "भारत के नागरिक, भारत की जनता अपने मन से आपको भारत का भाग्य विधाता समझती है और मानती है। हे अधिनायक (Superhero) तुम्ही भारत के भाग्य विधाता हो। तुम्हारी जय हो ! जय हो ! जय हो ! तुम्हारे भारत आने से सभी प्रान्त पंजाब, सिंध, गुजरात, मराठा मतलब महारास्त्र, द्रविड़ मतलब दक्षिण भारत, उत्कल मतलब उड़ीसा, बंगाल आदि और जितनी भी नदिया जैसे यमुना और गंगा ये सभी हर्षित है, खुश है, प्रसन्न है , तुम्हारा नाम लेकर ही हम जागते है और तुम्हारे नाम का आशीर्वाद चाहते है। तुम्हारी ही हम गाथा गाते है। हे भारत के भाग्य विधाता (सुपर हीरो ) तुम्हारी जय हो जय हो जय हो। "

जोर्ज पंचम भारत आया 1911 में और उसके स्वागत में ये गीत गाया गया। जब वो इंग्लैंड चला गया तो उसने उस जन गण मन का अंग्रेजी में अनुवाद करवाया। क्योंकि जब भारत में उसका इस गीत से स्वागत हुआ था तब उसके समझ में नहीं आया था कि ये गीत क्यों गाया गया और इसका अर्थ क्या है। जब अंग्रेजी अनुवाद उसने सुना तो वह बोला कि इतना सम्मान और इतनी खुशामद तो मेरी आज तक इंग्लॅण्ड में भी किसी ने नहीं की। वह बहुत खुश हुआ। उसने आदेश दिया कि जिसने भी ये गीत उसके (जोर्ज पंचम के) लिए लिखा है उसे इंग्लैंड बुलाया जाये। रविन्द्र नाथ टैगोर इंग्लैंड गए। जोर्ज पंचम उस समय नोबल पुरस्कार समिति का अध्यक्ष भी था।

उसने रविन्द्र नाथ टैगोर को नोबल पुरस्कार से सम्मानित करने का फैसला किया। तो रविन्द्र नाथ टैगोर ने इस नोबल पुरस्कार को लेने से मना कर दिया। क्यों कि गाँधी जी ने बहुत बुरी तरह से रविन्द्रनाथ टेगोर को उनके इस गीत के लिए खूब डांटा था। टैगोर ने कहा की आप मुझे नोबल पुरस्कार देना ही चाहते हैं तो मैंने एक गीतांजलि नामक रचना लिखी है उस पर मुझे दे दो लेकिन इस गीत के नाम पर मत दो और यही प्रचारित किया जाये क़ि मुझे जो नोबेल पुरस्कार दिया गया है वो गीतांजलि नामक रचना के ऊपर दिया गया है। जोर्ज पंचम मान गया और रविन्द्र नाथ टैगोर को सन 1913 में गीतांजलि नामक रचना के ऊपर नोबल पुरस्कार दिया गया।

रविन्द्र नाथ टैगोर की ये सहानुभूति ख़त्म हुई 1919 में जब जलिया वाला कांड हुआ और गाँधी जी ने लगभग गाली की भाषा में उनको पत्र लिखा और कहा क़ि अभी भी तुम्हारी आँखों से अंग्रेजियत का पर्दा नहीं उतरेगा तो कब उतरेगा, तुम अंग्रेजों के इतने चाटुकार कैसे हो गए, तुम इनके इतने समर्थक कैसे हो गए ? फिर गाँधी जी स्वयं रविन्द्र नाथ टैगोर से मिलने गए और बहुत जोर से डाटा कि अभी तक तुम अंग्रेजो की अंध भक्ति में डूबे हुए हो ? तब जाकर रविंद्रनाथ टैगोर की नीद खुली। इस काण्ड का टैगोर ने विरोध किया और नोबल पुरस्कार अंग्रेजी हुकूमत को लौटा दिया। सन 1919 से पहले जितना कुछ भी रविन्द्र नाथ टैगोर ने लिखा वो अंग्रेजी सरकार के पक्ष में था और 1919 के बाद उनके लेख कुछ कुछ अंग्रेजो के खिलाफ होने लगे थे।

रविन्द्र नाथ टेगोर के बहनोई, सुरेन्द्र नाथ बनर्जी लन्दन में रहते थे और ICS ऑफिसर थे। अपने बहनोई को उन्होंने एक पत्र लिखा था (ये 1919 के बाद की घटना है) । इसमें उन्होंने लिखा है कि ये गीत 'जन गण मन' अंग्रेजो के द्वारा मुझ पर दबाव डलवाकर लिखवाया गया है। इसके शब्दों का अर्थ अच्छा नहीं है। इस गीत को नहीं गाया जाये तो अच्छा है। लेकिन अंत में उन्होंने लिख दिया कि इस चिठ्ठी को किसी को नहीं दिखाए क्योंकि मैं इसे सिर्फ आप तक सीमित रखना चाहता हूँ लेकिन जब कभी मेरी म्रत्यु हो जाये तो सबको बता दे। 7 अगस्त 1941 को रबिन्द्र नाथ टैगोर की मृत्यु के बाद इस पत्र को सुरेन्द्र नाथ बनर्जी ने ये पत्र सार्वजनिक किया, और सारे देश को ये कहा क़ि ये जन गन मन गीत न गाया जाये।

1941 तक कांग्रेस पार्टी थोड़ी उभर चुकी थी। लेकिन वह दो खेमो में बट गई। जिसमे एक खेमे के समर्थक बाल गंगाधर तिलक थे और दुसरे खेमे में मोती लाल नेहरु थे। मतभेद था सरकार बनाने को लेकर। मोती लाल नेहरु चाहते थे कि स्वतंत्र भारत की सरकार अंग्रेजो के साथ कोई संयोजक सरकार (Coalition Government) बने। जबकि गंगाधर तिलक कहते थे कि अंग्रेजो के साथ मिलकर सरकार बनाना तो भारत के लोगों को धोखा देना है। इस मतभेद के कारण लोकमान्य तिलक कांग्रेस से निकल गए और उन्होंने गरम दल बनाया। कोंग्रेस के दो हिस्से हो गए। एक नरम दल और एक गरम दल।

गरम दल के नेता थे लोकमान्य तिलक जैसे क्रन्तिकारी। वे हर जगह वन्दे मातरम गाया करते थे। और नरम दल के नेता थे मोती लाल नेहरु (यहाँ मैं स्पष्ट कर दूँ कि गांधीजी उस समय तक कांग्रेस की आजीवन सदस्यता से इस्तीफा दे चुके थे, वो किसी तरफ नहीं थे, लेकिन गाँधी जी दोनों पक्ष के लिए आदरणीय थे क्योंकि गाँधी जी देश के लोगों के आदरणीय थे)। लेकिन नरम दल वाले ज्यादातर अंग्रेजो के साथ रहते थे। उनके साथ रहना, उनको सुनना, उनकी बैठकों में शामिल होना। हर समय अंग्रेजो से समझौते में रहते थे। वन्देमातरम से अंग्रेजो को बहुत चिढ होती थी। नरम दल वाले गरम दल को चिढाने के लिए 1911 में लिखा गया गीत "जन गण मन" गाया करते थे और गरम दल वाले "वन्दे मातरम"।

नरम दल वाले अंग्रेजों के समर्थक थे और अंग्रेजों को ये गीत पसंद नहीं था तो अंग्रेजों के कहने पर नरम दल वालों ने उस समय एक हवा उड़ा दी कि मुसलमानों को वन्दे मातरम नहीं गाना चाहिए क्यों कि इसमें बुतपरस्ती (मूर्ति पूजा) है। और आप जानते है कि मुसलमान मूर्ति पूजा के कट्टर विरोधी है। उस समय मुस्लिम लीग भी बन गई थी जिसके प्रमुख मोहम्मद अली जिन्ना थे। उन्होंने भी इसका विरोध करना शुरू कर दिया क्योंकि जिन्ना भी देखने भर को (उस समय तक) भारतीय थे मन,कर्म और वचन से अंग्रेज ही थे उन्होंने भी अंग्रेजों के इशारे पर ये कहना शुरू किया और मुसलमानों को वन्दे मातरम गाने से मना कर दिया। जब भारत सन 1947 में स्वतंत्र हो गया तो जवाहर लाल नेहरु ने इसमें राजनीति कर डाली। संविधान सभा की बहस चली। संविधान सभा के 319 में से 318 सांसद ऐसे थे जिन्होंने बंकिम बाबु द्वारा लिखित वन्देमातरम को राष्ट्र गान स्वीकार करने पर सहमति जताई।

बस एक सांसद ने इस प्रस्ताव को नहीं माना। और उस एक सांसद का नाम था पंडित जवाहर लाल नेहरु। उनका तर्क था कि वन्दे मातरम गीत से मुसलमानों के दिल को चोट पहुचती है इसलिए इसे नहीं गाना चाहिए (दरअसल इस गीत से मुसलमानों को नहीं अंग्रेजों के दिल को चोट पहुंचती थी)। अब इस झगडे का फैसला कौन करे, तो वे पहुचे गाँधी जी के पास। गाँधी जी ने कहा कि जन गन मन के पक्ष में तो मैं भी नहीं हूँ और तुम (नेहरु ) वन्देमातरम के पक्ष में नहीं हो तो कोई तीसरा गीत तैयार किया जाये। तो महात्मा गाँधी ने तीसरा विकल्प झंडा गान के रूप में दिया "विजयी विश्व तिरंगा प्यारा झंडा ऊँचा रहे हमारा"। लेकिन नेहरु जी उस पर भी तैयार नहीं हुए।

नेहरु जी का तर्क था कि झंडा गान ओर्केस्ट्रा पर नहीं बज सकता और जन गन मन ओर्केस्ट्रा पर बज सकता है। उस समय बात नहीं बनी तो नेहरु जी ने इस मुद्दे को गाँधी जी की मृत्यु तक टाले रखा और उनकी मृत्यु के बाद नेहरु जी ने जन गण मन को राष्ट्र गान घोषित कर दिया और जबरदस्ती भारतीयों पर इसे थोप दिया गया जबकि इसके जो बोल है उनका अर्थ कुछ और ही कहानी प्रस्तुत करते है, और दूसरा पक्ष नाराज न हो इसलिए वन्दे मातरम को राष्ट्रगीत बना दिया गया लेकिन कभी गया नहीं गया। नेहरु जी कोई ऐसा काम नहीं करना चाहते थे जिससे कि अंग्रेजों के दिल को चोट पहुंचे, मुसलमानों के वो इतने हिमायती कैसे हो सकते थे जिस आदमी ने पाकिस्तान बनवा दिया जब कि इस देश के मुसलमान पाकिस्तान नहीं चाहते थे, जन गण मन को इस लिए तरजीह दी गयी क्योंकि वो अंग्रेजों की भक्ति में गाया गया गीत था और वन्देमातरम इसलिए पीछे रह गया क्योंकि इस गीत से अंगेजों को दर्द होता था।

बीबीसी ने एक सर्वे किया था। उसने पूरे संसार में जितने भी भारत के लोग रहते थे, उनसे पुछा कि आपको दोनों में से कौन सा गीत ज्यादा पसंद है तो 99 % लोगों ने कहा वन्देमातरम। बीबीसी के इस सर्वे से एक बात और साफ़ हुई कि दुनिया के सबसे लोकप्रिय गीतों में दुसरे नंबर पर वन्देमातरम है। कई देश है जिनके लोगों को इसके बोल समझ में नहीं आते है लेकिन वो कहते है कि इसमें जो लय है उससे एक जज्बा पैदा होता है।

तो ये इतिहास है वन्दे मातरम का और जन गण मन का। अब ये आप को तय करना है कि आपको क्या गाना है ?

नितीश कुमार अपना स्वाभिमान देखते हैं ऐसे शहीदों का नहीं

देश के शहीद के दाह संस्कार स्थल पर शराब का अड्डा ....

खुदीराम बोस का जहां अंतिम संस्कार किया गया था . आज बहां छलकते है दारु के जाम ..

बेगैरत देश में शहीदों के अपमान की पराकाष्ठा ...

बिहार में मुजफ्फरपुर के चंदवारामें शहीदों की चिता पर हर वर्ष मेले तो नहीं लगते, लेकिन हर दिन यहां जाम जरूरत टकराए जाते हैं..

देश की स्वतंत्रता के लिए क्रांति की मशाल जलाने वाले खुदीराम बोस का जहां दाह संस्कार किया गया था, वह स्थान सरकार की उपेक्षा का शिकार है। कहा जाता हैकि शाम को यह स्थल मयखाने में तब्दील हो जाता है।देश में अंग्रेजों के खिलाफ क्रांति की लौ जलाने वाले खदीराम बोस को 11 अगस्त 1908 को मुजफ्फरपुर जेल में फांसी दी गई थी। खुदीराम बोस का जहां अंतिम संस्कार किया गया था, वह स्थान अब भी सरकार की उपेक्षा का शिकार है।
आलम यह है कि वीरान पड़े इस स्थल पर शाम में खुलेआम शराब बेचीं जाते हैं। अब लोग इस पर कहते हैं, यहां शहीदों की चिता पर हर वर्ष मेले तो नहीं लगते, लेकिन हर दिन यहां जाम जरूरत टकराए जाते हैं। खुदीराम बोस का अंतिम संस्कार मुजफ्फरपुर जेल से करीब दो किलोमीटर दूर चंदवारा में किया गया था।

Monday, August 13, 2012

इ गवर्नेस का खाका तैयार

Prabhat Khabar 10 august
मुजफ्फरपुर : इंटरनेट के माध्यम से सरकारी योजनाओं को अमली जामा पहनाने के लिए इ डिस्ट्रीक्ट गवर्नेस की कवायद शुरू हो गयी है. सोसाइटी एक्ट के तहत निबंधन के लिए जिलाधिकारी की अध्यक्षता में 23 सदस्यीय कमेटी का गठन किया है.
जिसमें एसएसपी राजेश कुमार के साथ अन्य विभाग के अधिकारी है. इसके अलावा डीएम द्बारा नामित तीन सदस्य, वसुधा केंद्र के चार संचालक के साथ महिला सशक्ति करण एवं अधिकार के क्षेत्र में कार्य कर रही महिलाओं को शामिल किया गया है. बता दें कि इ गवर्नेस का उदेश्य सरकारी योजना एवं सेवओं में पारदर्शिता के साथ गति लाना है.
ऐसे मिलेगी सुविधा
ई डिस्ट्रीक्ट गवर्नेस के तहत पंचायत से लेकर जिला स्तर तक की सरकारी योजनाएं ऑन लाइन हो जायेगी. योजना की रूप रेखा से लेकर इसे लागू करने के सभी दिशा निर्देश के साथ कार्य की प्रगति की जानकारी इंटरनेट पर उपलब्ध होगी. यही नहीं सभी तरह की सरकारी प्रमाण पत्र भी नेट के माध्यम से उपलब्ध होगा.
इ गवर्नेस सोसाइटी के सदस्य
जिलाधिकारी (चेयर मैन), पुलिस अधीक्षक, राज्य ई गवर्नेस के प्रतिनिधि, अपर समाहर्ता, डीडीसी, कार्यपालक अभियंता पीएचइडी, कार्यपालक अभियंता बिजली, डीइटी बीएसएनल, लीड बैंक मैनेजर, सिविल सजर्न, ट्रेजरी ऑफिसर, शिक्षा पदाधिकारी, जिला सूचना पदाधिकारी, पंचायती राज पदाधिकारी, भूमि व राजस्व विभाग के उपसमाहर्ता, आपूर्ति पदाधिकारी, आइटी मैनेजर, एक एनजीओ, डीएम की ओर से नामित तीन सदस्य, एससीए के प्रतिनिधि, चार वसुधा केंद्र संचालक, महिला जागरू कता व सशक्तीकरण के लिए कार्य करने वाली चार महिला प्रतिनिधि बतौर सदस्य इ गवर्नेस सोसाइटी में शामिल होंगे.

माओवादी : लेवी के लिए आरटीआइ का सहारा

मुजफ्फरपुर : माओवादी विकास कार्यो में लेवी वसूलने के लिए नया फंडा अपना रहे हैं. सूचना के अधिकार के तहत योजनाओं का इस्टीमेट पता करते हैं. इसी के आधार पर ठेकेदारों से लेवी की वसूली करते हैं.
अगर कोई ठेकेदार इस्टीमेट की गलत जानकारी देता है, तो माओवादी उसे इस्टीमेट के साथ लेवी के लिए पत्र भेजते हैं. साथ ही आगे से इस तरह से नहीं करने की धमकी देते हैं. साथ ही जुर्माना भी संबंधित ठेकेदार से वसूला जाता है.हाल में ऐसा ही मामला पड़ोसी जिले शिवहर में सामने आया था, जिसमें एक योजना का इस्टीमेट चार करोड़ रुपये था, लेकिन ठेकेदार ने माओवादियों को दो करोड़ का ही इस्टीमेट बताया.
इसी के आधार पर लेवी की राशि दी. इसके बाद माओवादियों ने आरटीआइ के तहत इस्टीमेट की जानकारी ली और संबंधित ठेकेदार को धमकी भरा पत्र भेजा गया. इसमें उसकी हत्या तक की बात कही गयी थी. सूत्रों की मानें, तो ठेकेदार ने जुर्माने के साथ चार करोड़ पर लेवी की राशि अदा की, तब जाकर माओवादी माने.नाम नहीं छापने की शर्त पर एक ठेकेदार ने बताया, माओवादी, जब से आरटीआइ का सहारा लेने लगे हैं, तब से हम लोग सतर्क हो गये हैं.
अब तय इस्टीमेट पर लेवी की राशि कम करने की मांग माओवादियों से की जाती है. इस पर वह मान जाते हैं, कभी-कभी तय दस फीसदी लेवी की जगह पांच से सात फीसदी ही लेवी देनी पड़ती है.माओवादियों के आरटीआइ के इस्तेमाल से प्रशासनिक अधिकारी हैरत में हैं.इनका कहना है, अगर माओवादी ऐसा कर रहे हैं, तो उसे रोक पाना मुश्किल काम है, क्योंकि सरकारी नियम के मुताबिक जानकारी देना हमारी मजबूरी है. जब कोई जानकारी मांगता है, तो वह उसका क्या उपयोग करेगा, यह नहीं पूछा जाता है.
-रवीन्द्र कुमार सिंह

Friday, August 10, 2012

वसुधा संचालक किसी अन्य देश से होते तो शायद सरकार काम देती

किसी देश की सीमा पार करने पर....

• यदि आप "चीनी" सीमा अवैध रूप से पार करते हैं तो, आपका अपहरण कर लिया जायेगा और आप फिर कभी नहीं मिलोगे.... !!

• यदि आप "क्यूबा" की सीमा अवैध रूप से पार करते है तो... आपको एक राजनीतिक षडयंत्र के जुर्म में जेल में डाल दिया है....!!

• यदि आप "ब्रिटिश" बॉर्डर अवैध रूप से पार करते हैं तो, आपको गिरफ्तार किया जायेगा, मुकदमा चलेगा, जेल भेजा जायेगा और अपने सजा पूरी करने के बाद निर्वासित....!!

अब....
• यदि आप "भारतीय" सीमा अवैध रूप से पार कर गए थे, तो तुम्हें मिलता है .....
 एक राशन कार्ड, एक पासपोर्ट (यहां तक कि एक से अधिक - यदि आप थोड़ा बहुत चालाक होते हैं)

एक ड्राइवर का लाइसेंस, मतदाता पहचान कार्ड, क्रेडिट कार्ड

सरकार रियायती किराए पर आवास, ऋण एक घर खरीदने के लिए

मुफ्त शिक्षा, मुफ्त स्वास्थ्य देखभाल

... और वास्तव में ..... भ्रष्ट नेताओं का चुनाव करने के लिए मतदान का अधिकार...!!

Some BDO have been arrested by CID

 I think BDO Rampur distt. Kaimur has intention to all VASUDHA KENDRA. If one is doing mistake then why BDO blaming to all VASUDHA KENDRA? Some BDO have been arrested by CID then we should blame to all BDOs of Bihar State. Mr. BDO Rampur you are wrong here. pls say sorry to all VASUDHA KENDRA.