Saturday, May 26, 2012

सरकारी कार्यो पर होगी वसुधा केन्द्रों की नजर

कार्यालय प्रतिनिधि, सासाराम          (दैनिक जागरण) 
ग्रामीण क्षेत्रों में चल रहे विकास कार्यो पर अब वसुधा केन्द्रों का भी पहरा पड़ेगा। पहले पीडीएस अब इन्हें मनरेगा के कार्यो की इलेक्ट्रानिक रिपोर्टिग की जवाबदेही सौंपी जा रही है।
वसुधा केन्द्र के जिला समन्वयक उपेन्द्र कुमार सिंह की मानें तो मनरेगा में मस्टर रोल रजिस्ट्रेशन, जाब एप्लिकेशन, फोटो अपलोड, जल संरक्षण, लघु सिंचाई जैसी योजनाओं की इलेक्ट्रानिक रिपोर्टिग की जानी है। जिसके लिए अलग-अलग दर निर्धारित है। इसके पूर्व जन वितरण प्रणाली के दुकानों पर आने वाले राशन-किरासन कूपन का स्कैनिंग कर आनलाइन रिपोर्टिग का कार्य मिला था। हालांकि आपूर्ति विभाग की उदासीनता व गड़बड़ी उजागर होने के भय से अधिकारी इस कार्य में रुचि नहीं लिए। और न ही किए गए कार्यो का भुगतान किया गया।
वसुधा केन्द्र के नोडल वीएलई कुमार रविरंजन कहते हैं कि चार साल पूर्व वसुधा केन्द्र के नाम पर हजारों रुपये बेरोजगारों से जमा कराए गए। लेकिन उन्हें अब तक कोई काम नहीं मिला।

Friday, May 11, 2012

दो करोड़ साठ लाख भारतीय विदेशों मे


जी हाँ करीब दो करोड़ साठ लाख भारतीय यूरोप, एशिया, और अफ्रीका के विभिन्न देशों मे रह रहे है, और अपने बुद्धि और कुशलता से वहा कि अर्थव्यवस्था मे अपना योगदान दे रहें है। भारत के कुशल और बुद्धिमान व्यक्तियों ने विदेशो मे भारत का खूब नाम रोशन किया है। इक्कीसवीं सदी मे पूरे विश्व कि निगाह भारत पर है । आईये देखे भारतीयों कि जनसँख्या विदेशों मे :-

39,50,000 भारतीय एशिया मे है
47,00,000 भारतीय यूरोप मे व्
6,00,000 भारतीय अफ्रीका मे है ।

विभिन्न देशों मे भारतीयों कि संख्या इस प्रकार है :
अमेरिका : 19 लाख
आस्ट्रेलिया : 2 लाख 30 हज़ार
ब्रिटेन : 1 लाख 60 हज़ार
जर्मनी : 80 हज़ार
फ्रांस : 75 हज़ार
इटली : 71 हज़ार
रूस : 16 हज़ार

#अमेरिका मे कुल आबादी मे से सिर्फ़ ३ % आबादी भारतियों कि है लेकिन अमेरिका कि अर्थव्यवस्था और विकास मे करीब ५०% योगदान भारतियों का है ।
#अमेरिका मे 38% डाक्टर भारतीय मूल के है।
#36% भारतीय वैज्ञानिक नासा मे है।
#आई टी के क्षेत्र मे 12% वैज्ञानिक भारतीय है।
#अमेरिका कि कुल समूह जातियों मे भारतीयों मे सर्वोच्च शैक्षणिक योग्यता है। कुल भारतीयों मे 67% भारतीयों के पास स्नातक या उससे उच्च डिग्री है जबकि राष्ट्रीय स्तर पर यह प्रतिशत सिर्फ़ 28% है।
#अमेरिका के कुल होटलों मे से ३५% भारतीयों मालिक के है और सस्ते लौज मे ५०% भारतीयों के है । जिसकी कुल बाजार लागत करीब ४० अरब डालर है।
#अमेरिका के हर दस मे से एक भारतीय करोड़पति है । कुल अमीरों मे १० % अमीर भारतीय है ।
#अमेरिका मे रहने वाले कुल भारतीयों मे से 40% भारतीय के पास परास्नातक, डाक्टरेट या अन्य पेशेवर डिग्री है, जो कि अमेरिका के राष्ट्रीय स्तर से पाँच गुना अधिक है।

अमेरिका ही नही विश्व के कई देशों मे भी भारतीयों ने अपना परचम लहराया है।
है ना गर्व कि बात? केसरवानी समाज के भी सैकडों लोग विदेशों मे विभिन्न पेशे और पदों पर आसीन है । आशा है कि जल्द ही भारत एक महाशक्ति के रूप मे उभर कर आएगा।

साभार : केशर वाणी



 


Monday, May 7, 2012

ई-गवर्नेस की दिशा में एक क्रांतिकारी पहल

सूबे का पहला ई डिस्ट्रिक्ट बना नालंदा


केंद्र संचालकों की जगी आस
Updated on: Sat, 05 May 2012 10:10 PM (IST)      




सूबे का पहला ई डिस्ट्रिक्ट बना नालंदा
बिहारशरीफ, जागरण प्रतिनिधि : ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले लोगों के लिए एक अच्छी खबर है। अब उन्हें विभिन्न प्रकार के प्रमाणपत्र बनवाने के लिए ब्लाकों व अंचलों के चक्कर नहीं काटने पड़ेंगे। इसके लिए राज्य सरकार ने पंचायत स्तर पर ही वसुधा केन्द्र के माध्यम से सारी सुविधाएं उपलब्ध करा दी है। शनिवार को बेलट्रान के प्रबंध निदेशक अतुल सिन्हा व डीएम संजय कुमार अग्रवाल ने परियोजना की यहां विधिवत शुरूआत की। मालूम हो कि कुछ दिन पूर्व ही राज्य में सबसे पहले नालंदा जिले में आंगनबाड़ी केंद्रों की लाइव मानीटरिंग सिस्टम की शुरूआत हुई है। दोनों महत्वपूर्ण प्रशासनिक पहल में यहां के वर्तमान डीएम संजय कुमार अग्रवाल की भूमिका काफी उल्लेखनीय रही है। डीएम ने बताया कि नालंदा बिहार का ऐसा पहला जिला बन गया है जिसमें डिजिटल हस्ताक्षर के माध्यम से प्रमाणपत्र जारी किए जाएंगे। उन्होंने बताया कि जिले की सभी 250 पंचायतों में वसुधा केन्द्र कार्य कर रहे हैं। इस कारण अब आवेदकों को प्रखंड कार्यालय आने की आवश्यकता नहीं है। अब उन्हें वसुधा केन्द्र पर ही आवेदन देना है और वहां से ही डिजिटल हस्ताक्षरयुक्त प्रमाणपत्र उपलब्ध हो जायेंगे। यही नहीं आवेदन देने के 21 दिन के भीतर आवेदक इंटरनेट से प्रमाण पत्र की वस्तुस्थिति का पता लगा सकेंगे। उन्होंने कहा कि डिजिटल हस्ताक्षरयुक्त प्रमाण पत्र निर्गत करने की सुविधा भारत में मात्र दो से चार जिलों में ही है। ई-गवर्नेस की दिशा में यह एक क्रांतिकारी प्रशासनिक पहल है। नालंदा जिला प्रशासन विगत दो वर्षो से ई-गवर्नेस की तैयारी की दिशा में संजीदगी से प्रयासरत था। खुद डीएम इसे अपनी निगरानी में व्यवस्थित करने में जुटे थे। डीएम ने बताया कि इस परियोजना से सबसे अधिक ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले लोगों को फायदा मिलेगा। बेलट्रान के प्रबंध निदेशक अतुल सिन्हा ने कहा कि प्रत्येक ब्लाक को ब्राडबैंड से जोड़ा जायेगा। ग्रामीणों को कम शुल्क में भी अपने ही पंचायत के वसुधा केन्द्र से जाति, आवास, आय, ओबीसी, चरित्र प्रमाण पत्र के साथ-साथ विकलांगता पेंशन और विधवा पेंशन आदि की सुविधा उपलब्ध हो सकेगी। सोमवार से यह योजना नालंदा जिले में अमल में आ जाएगी।
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इस उपलब्धि के लिए अगर हम बिहार शरीफ के जिलाधीश को जितनी बधाइयाँ समर्पित करें वो नाकाफी होगी ! नालंदा के जिला पदाधिकारी संजय कुमार अग्रवाल जी को हम सभी वसुधा केंद्र संचालक तहे दिल से अपनी आभार व्यक्त करते हैं ! यह सफलता इनकी लगन और कड़ी मेहनत को दर्शाता है ! अब लगता है की इनके इस प्रयास को और भी जिलों के जिलाधीश मिशाल के तौर पे लेंगे, की "कैसे गावों में इलेक्ट्रोनिक प्रशासन की लौ जलाई जाती है ? इसके पहले हम सभी संचालकों ने समय -समय पे सरकार की आँख खोलने का प्रयास किया लेकिन किसी ने ध्यान नहीं दिया !चलिए जंहा कुछ नहीं था वहां कम से कम एक उम्मीद की किरण तो दिखनी शुरू हो गयी ! इसे कहते हैं भारतीय प्रशासनिक पदाधिकारी की दिमाग की ताकत! नालंदा में वैसे भ्रष्ट्रचारी ताकतें सड़क पे मारे फिरेंगी जो कभी मासूम ग्रामीण गरीबों के जेब को कतल किया करते थे इन सेवाओं के लाभ को दिलाने के लिए !
Kumar Ravi Ranjan
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Sunday, May 6, 2012

गांव से कोसों दूर है इंटरनेट BBC

भारत के ग्रामीण इलाकों में आधे प्रतिशत से भी कम परिवारों के पास इंटरनेट की सुविधा है.
सरकारी सर्वेक्षण के अनुसार शहरों में छह प्रतिशत परिवार इंटरनेट का इस्तेमाल करते हैं.
नेशनल सेंपल सर्वे ऑर्गेनाइज़ेशन (एनएसएसओ)वर्ष 2009-10 की एक रिपोर्ट के अनुसार देश भर में केवल 0.4 प्रतिशत ग्रामीण परिवारों के पास इंटरनेट की सुविधा है.
इस रिपोर्ट के अनुसार प्रति 1000 परिवारों में केवल साढ़े तीन घरों में केवल इंटरनेट की सेवा उपलब्ध है.
रविवार, 6 मई, 2012 को 13:05 IST तक के समाचार  BBC

Friday, May 4, 2012

स्रेई सहज का " नोटिस भेजो - नोटिस भेजो" का खेल

रमण सिंह कौन जो VLe से पैसा मांगे ?
बिहार राज्य में स्रेई सहज कंपनी द्वारा सरकारी निर्देशों के पश्चात् हवाई सपने दिखा कर बिहार के भोले -भाले 6000 कंप्यूटर शिक्षित और प्रशिक्षित नौजवानों को धोखेबाजी से वसुधा केंद्र खोलवाने का काम किया गया ! सहज कंपनी ने चाइना मंडी जैसी -यूज एंड थ्रो कंप्यूटर एवं अन्य उपकरणों को सरकारी तंत्र के लापरवाही के कारण VLe को ऋण के रूप में मार्जिन मनी लेकर कर काफी उच्च दामों पे उपलब्ध कराने का काम किया ! सरकार सोती रही और "सहज" कम्पनी बिहार के वसुधा केंद्र के मासूम संचालकों को लुटती रही ! वर्तमान में 6000 हजार से ज्यादा केंद्र बिहार में खुल चुके हैं ! समय भी सात बरस से ज्यादा बीत चूका है! बिहार ने काफी लम्बे विकास के रास्ते को पार भी किया है! लेकिन वसुधा केंद्र -सहज कम्पनी तो कभी सरकार की ओर टक टकी  लगाये रहा , इस आस में की शायद सरकार और कम्पनी अपने किये वादों को पूरा कर वसुधा केन्द्रों को काम देने का सफल प्रयास करेगी,  साबुत के तौर पे वो कागज उपलब्ध है जिसमे सहज कम्पनी ने पुरे विस्तार में समझाया है  की, किस प्रकार वसुधा संचालक  - केंद्र खुलने के 6 महीने पश्चात् रुपया 20000 का
मासिक लाभ कमाएंगे! संचालकों को विश्वास करना भी लाजमी था की मुख्य मंत्री श्री नितीश कुमार ने खुद के अनगिनत भाषणों में वसुधा केंद्र से मिलने वाले सरकारी सेवाओं का जिक्र किया था ! केंद्र खुलने का शिलशिला जारी रहा एवं समय बीतता रहा !  सात साल गुजर गए , लेकिन संचालकों को 20 रुपया कमाना भी मुहाल की बात रही, घर की पूंजी लगानी पड़ी केन्द्रों को जीवित रखने के लिए ! क्या सरकार और सहज को नहीं पता की केंद्र को जीवित रखने के लिए चालक, कट्रिज, पेपर, उर्जा , नेट चार्ज एवं अन्य संसाधनों पे होने वाले खर्च को VLe द्वारा व्यक्तिगत रूप से  वहन किया जाता है ? किसको पता नहीं की एक अडाप्टर भी जलता है तो VLe  को उसके लिए 1200 रुपया खर्च करना पड़ता है ! कैमरा बिगड़ा तो हज़ार के निचे सोचना भी मुर्खता होगा की बनेगा! आज साधारण मजदुर की बेगारी भी 150 रुपया से निचे नहीं मिलती आठ घंटे के लिए ! अगर सरकार तथा सहज कम्पनी को इन सब बातों पे यकीन नहीं आता तो अपने CAG या किसी गुप्तचर संस्था से जाँच करा ले की अब तक वसुधा केंद्र संचालकों को इस केंद्र से कितना आमदनी प्राप्त हुआ है ! क्या सरकार को पता नहीं है की प्रखंड स्तर पे जन वितरण के कूपन स्कैनिंग के भुगतान सरकार के पास लंबित है, जो संचालकों को 04 पैसा प्रति कूपन के कम दर पे मिलना तय है ? क्या " स्रेई सहज " कम्पनी को इतला नहीं है की उसने बिना पूछे संचालकों का पैसा पोर्टल से अवैध रूप से हड़प लिया ? सहज ने फाल्स ई - लर्निंग का बिल बना कई संचालकों का पैसा पोर्टल से गायब किया ! जिस सम्बन्ध में देश स्तर पे सहज को बदनामी झेलनी पड़ी ! क्या सहज को मालूम नहीं की BELTRON  के निदेशक श्री के के पाठक (IAS ) ने किस प्रकार की उच्च स्तरीय जाँच बिठाया था ? अगर के० के० पाठक निदेशक के पद पे और चंद महीने रह गए होते तो शायद सहज का देशी मुखौटा चेहरे से उतर जाता ? सहज कम्पनी का मालिक देशी ( नालंदा- बिहार निवासी ) है, लेकिन इस कम्पनी की पूंजी विदेशी है ! ज्यादातर इस कम्पनी के निवेशक यूरोप से सम्बन्धित हैं ! और ये कम्पनी बड़ी कम्पनियों में शुमार की जाती है ! सहज ने जो कम्प्यूटर (विप्रो मेड ) उपलब्ध करायी उसकी वो कीमत 22000 रुपया लगाई है ! अब बात उठता है की वो कम्प्यूटर हमने किस लिए लिया था ? सीधी सी बात है की - बिजनेस परपस के लिए सहज ने हमें कम्प्यूटर तथा अन्य उपकरण उपलब्ध कराया था ! ये ग़ालिब की सच्चाई है की VLe का दिल वादों के अनुसार नहीं बहला पाया वादकारों ने !
हाल के दिनों में VLe  भाइयों की मेसेज मिलती है की, स्रेई सहज बिहार के वरीय अधिकारी रमण सिंह अपने वकालत के पढाई और अनुभव को बखूबी सहज के भला के लिए उपयोग कर रहे हैं ,संचालकों  पर नोटिस भेज कर कम्पनी के चहेते बनने की कोशिश कर रहे हैं ! नोटिस में जीकर है की ब्याज सहित दिए गए मूलधन को संचालक शीघ्र लौटाए ! नहीं तो क़ानूनी करवाई सभव हो सकती है !
                                                    रमण सिंह जी " सौ चूहा खा के बिल्ली चली हज को "! किस लिए और किस करार पे आपने नहीं बल्कि कम्पनी ने ये ऋण संचालकों को दिया था? क्या सहज ने ये रकम हमे खेती करने के लिए दिया था ? क्या ये ऋण हमे बच्ची की शादी करने हेतु शुद पे मिला था ? या फिर ये रकम संचालक के बच्चे को आई० आई० टी० कराने हेतु दिया गया था ? अगर हाँ तो वो एकरारनामा की प्रति भी साथ में VLe को भेज देते, जिसमे इन बातों की जिक्र होती !
                                               रमण सिंह जी ग़ालिब की उक्ति आप पे सटीक उद्धृत मालूम पड़ती है की " हमे मालूम है ज़माने की हकीकत लेकिन ग़ालिब, दिल बहलाने का ख्याल अच्छा है "! शायद रमण सिंह जी को कार्यालय में उस दिन काम नहीं रहा होगा सो, टाइम पास या दिल को बहलाने के लिए " नोटिस भेजो - नोटिस भेजो" का चोर सिपाही जैसा खेल - खेला  होगा मनोरंजन के रूप में ? 
 रमण सिंह के बारे में मैं सुन रखा था की बड़े ही तेज तरार किसम के व्यक्ति हैं ! लेकिन ये नोटिस वाली खबर हमें मजबूर करता है इनको शातिर मानने के लिए ! हमें सारा सामान लोन के रूप में पंचायतों में कथित सरकारी सेवाओं को आम जनता तक  कंप्यूटर और इंटरनेट के माध्यम से पहुचाने हेतु दिया गया था ! और उससे प्राप्त आमदनी के हिस्से से ऋण राशी को किश्तानुसार भुगतान करना था ! अब रमण सिंह बताएं की VLe लोगों का पोर्टल बिजनेस के रूप में कितना खर्च और आमदनी बता रहा है ? अगर कमाई हुई है तो बताया जाये, सभी संचालक आपको पैसे वापस करेंगे ! अगर नहीं हुई है तो फिर आप अब इस ऋण राशी के भुगतान की चिंता छोड़ दीजिये तो ही बेहतर होगा ! अब उन संचालकों का क्या होगा जो 6 साल पहले सिस्टम लिया था ? क्या अब वो सिस्टम 6 साल बाद कामयाब है ? कोई सोच सकता है की वो सिस्टम अब ज़माने  के रफ़्तार के साथ दौड़ेगा ? अब जमाना 4G का आ चूका है, और बिना काम हुए सहज 1G का रिकवरी चाहता है ! मेरा सहज कम्पनी  को सुझाव मात्र होगा की अब, सहज सरकार के ऊपर दबाव बनाये ताकि फिर से ज़माने की रफ़्तार के साथ काम करने वाला कम्प्यूटर और साजो समान संचालकों को पुनः ऋण के रूप में उपलब्ध कराया जाये ! जिससे आनेवाले दिनों में आमदनी हो सके और सहज की ऋण की भरपाई संचालकों द्वारा की जा सके !  
अगर स्रेई सहज ये सोच रहा है की उसकी पूंजी डूब रही है, तो ये कम्पनी की नादानी है! कौन लौटाएगा हमारे मुजफ्फरपुर के संचालक स्व० कृष्ण कुमार के जीवन लीला को ? जो बेरोजगारी की असहनीय दर्द को बर्दाश्त न कर आत्म हत्या कर लि ! कौन लौटाएगा स्वर्णिम कैरियर को जो VLe ने त्याग कर इस बिजनेस को अपनाया ? ऐसे कई अनुतरित सवालों की जवाब स्रेई सहज कम्पनी तथा बिहार सरकार को आनेवाले दिनों में देना होगा! ये नहीं चलेगा की आपका ही दर्द सिर्फ दर्द होता ! औरों की दर्द..................?
कुमार रवि रंजन
नोडल - VLe
रोहतास, बिहार