गैरो को भला क्या समझाते, जब अपनो ने हमे समझा ही नही...
देश मे महिलाओ की अस्मत को तार-तार करने मे कोई गैर नही बल्कि उनके अपने सगे सम्बन्धी और जान पहचान के लोग ही है, यह चौकाने वाला तथ्य राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो के ताजा आँकड़ो से सामने आया है
ये आँकड़े बताते है कि वर्ष 2012 मे बलात्कार के करीब 98% मामलो मे आरोपी पीड़ित महिलाओ के परिचित ही थे, वर्ष 2012 के दौरान भारतीय दण्ड विधान की धारा 376 के तहत बलात्कार के कुल 24923 मामले दर्ज किये गये,इनमे से 24470 मामलो मे आरोपी पीड़ित महिलाओ के परिचित थे, यानि हर 100 मामलो मे से 98 मे महिलाए अपने जानने वालो के ही हवस का शिकार बनी इनमे महिलाओ के परिजन, रिश्तेदार और पड़ोसी शामिल है,
अब सवाल ये उठता है कि आखिर हमारे समाज मे इतनी विकृति मानसिकता फैली कहाँ से? हमारे संस्कृति की मान्यताओ के अनुसार अपनी बहन बेटियो के प्रति हमारे हृदय मे जो सम्मान भाव निष्ठा स्नेह व कर्तव्यपरायणता होनी चाहिए वो कहाँ लुप्त होती जा रही है? असल मे ये उसी बाजारवाद की उपज है जिसमे कपड़े से लेकर खाने पीने तक की हर वस्तु मे स्त्री को भोग्या के रुप मे परोसा जा रहा है,लानत है ऐसी वैश्विक और विकसित मानसिकता पर जो रिश्तो की मर्यादा को तार-तार करके अपनी हवस की भूख मिटाने को प्रेरित करता है और मै थूकता हूँ ऐसे लोगो पर जो इस पाश्विक मानसिकता को बढ़ावा देते है और उन लोगो पर भी जो बिना सोचे समझे इस पाश्विक मानसिकता को अपनाते जा रहे हैँ
देश मे महिलाओ की अस्मत को तार-तार करने मे कोई गैर नही बल्कि उनके अपने सगे सम्बन्धी और जान पहचान के लोग ही है, यह चौकाने वाला तथ्य राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो के ताजा आँकड़ो से सामने आया है
ये आँकड़े बताते है कि वर्ष 2012 मे बलात्कार के करीब 98% मामलो मे आरोपी पीड़ित महिलाओ के परिचित ही थे, वर्ष 2012 के दौरान भारतीय दण्ड विधान की धारा 376 के तहत बलात्कार के कुल 24923 मामले दर्ज किये गये,इनमे से 24470 मामलो मे आरोपी पीड़ित महिलाओ के परिचित थे, यानि हर 100 मामलो मे से 98 मे महिलाए अपने जानने वालो के ही हवस का शिकार बनी इनमे महिलाओ के परिजन, रिश्तेदार और पड़ोसी शामिल है,
अब सवाल ये उठता है कि आखिर हमारे समाज मे इतनी विकृति मानसिकता फैली कहाँ से? हमारे संस्कृति की मान्यताओ के अनुसार अपनी बहन बेटियो के प्रति हमारे हृदय मे जो सम्मान भाव निष्ठा स्नेह व कर्तव्यपरायणता होनी चाहिए वो कहाँ लुप्त होती जा रही है? असल मे ये उसी बाजारवाद की उपज है जिसमे कपड़े से लेकर खाने पीने तक की हर वस्तु मे स्त्री को भोग्या के रुप मे परोसा जा रहा है,लानत है ऐसी वैश्विक और विकसित मानसिकता पर जो रिश्तो की मर्यादा को तार-तार करके अपनी हवस की भूख मिटाने को प्रेरित करता है और मै थूकता हूँ ऐसे लोगो पर जो इस पाश्विक मानसिकता को बढ़ावा देते है और उन लोगो पर भी जो बिना सोचे समझे इस पाश्विक मानसिकता को अपनाते जा रहे हैँ
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